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( १७१.
लवणाम्भोधिकालोदवेदिकास्पर्शकारकौ । इष्वाकारगिरी तत्र विद्येते दक्षिणोत्तरौ ॥ १४६ योजनानां सहस्रं स विष्कम्भे हयुदये पुनः । शतानां च चतुष्कं स्यात्तद्वीपार्धविभागकृत् ॥ १४७ जम्बूद्वीपे यथा सर्वं भरताद्यं मतं तथा । खण्डद्वयेऽपि तत्सर्वं तत्र मेरुद्वयाश्रितम् ॥ १४८ तत्र ये सन्ति विस्तीर्णाः सर्वेऽपि कुलपर्वताः । चक्रारवत्सुसंस्थाना वर्षास्तद्विवराणि वा ॥ १४९ वेष्टितं वलयेनैतत्कालोदस्य पयोनिधेः । पुष्करद्वीपमप्यस्ति धातकोखण्डवत्ततः ॥ १५० योजनानां सुलक्षाणि विस्तीर्णः षोडशावनौ । तदर्द्धे वलयाकारो मानुषोत्तरपर्वतः ।। १५१ यस्तु कश्चिद्विशेषोऽस्ति द्वीपद्वयसमाश्रितः । जम्बूद्वीपात्स विज्ञेयः सर्वो लोकानुयोगतः ।। १५२ मानुषोत्तर शैलान्ते' मानुषं क्षेत्रमुत्तमं । तद्बहिर्न यतः सन्ति मानुषा इत्यतोऽन्वयात् ॥ १५३ मानुषोत्तरशैलाग्रे स्वयम्भूरमणार्द्धके । नागेन्द्राख्यो नगः सर्वं परिक्षिप्य व्यवस्थितः ॥ १५४
सिद्धान्तसारः
दिशामें है । वे दोनों पर्वत एक हजार योजन चौडाईको धारण करनेवाले हैं और चारसौ योजनकी उनकी ऊंचाई है । इन दो पर्वतोंने इस धातकीखंडके दो विभाग किये हैं ।। १४४-१४७ ॥
जम्बूद्वीप में जैसे भरतादिक क्षेत्र, हिमवदादिक पर्वत, पद्मादिक सरोवर गंगासिन्धवादिक नदियाँ हैं वैसे धातकीखंडमें भी हैं और पुष्करार्द्ध में भी हैं । सिर्फ इन दो खंडोमें दो दो मेरु होनेसे भरतादिक क्षेत्र दो दो हैं । हिमवदादिक पर्वतभी दो दो हैं । पद्मादिक सरोवरभी दो दो हैं । ऐसेही गंगासिन्ध्वादिक नदियाँभी दो दो हैं ।। १४८ ॥
धातकीखंड में क्षेत्रादिकोंकी संख्या द्विगुण कही है । इस धातकीखंडमें जो सर्व विस्तीर्ण कुलपर्वत हैं वे चक्रके आरेकी आकृतिको धारण करते हैं तथा उनमें जो क्षेत्र हैं वे विवरोंका आकार धारण करते हैं ।। १४९ ॥
( पुष्करद्वीपका संक्षिप्त वर्णन । ) - कालोदसमुद्रके वलयसे वेष्टित धातकी खण्डके समान पुष्करद्वीप नामक द्वीप है । वह द्वीप सोलह लाख योजन विस्तारको धारण करता है । इस द्वीपके आधे भागमें वलयाकार मानुषोत्तर नामक पर्वत है । जम्बूद्वीपकी अपेक्षा इन दोनों द्वीपों में जो कुछ विशेषता है वह सब लोकानुयोग नामक शास्त्रसे जानने योग्य है ।। १५० - १५२ ।। ( मनुष्यक्षेत्र कहांतक है ? ) - मानुषोत्तोर पर्वतके अन्ततक उत्तम मनुष्यक्षेत्र है । इस मनुष्यक्षेत्र के बाहर मनुष्य नहीं है, अतः मानुषोत्तर यह नाम अथवा मनुष्यक्षेत्र यह नाम योग्य है ।। १५३ ।
मानुषोत्तर शैलके आगे और स्वयंभूरमण द्वीपके आधे भागमें नागेंद्र नामक पर्वत वलयाकार है उसने आधे स्वयम्भूरमण द्वीपको घेर रखा है ।। १५४ ।
१ आ. शैलान्तर्मानुषं
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