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सिद्धान्तसारः
(१६५
सोतोभयतटे रम्ये पर्वतद्वितयं मतम् । युग्मकारव्यमिति ख्यातं प्रख्यातं मुनिपुङ्गवैः ॥ ८६ तस्माच्च युग्मक द्वन्द्वाद्दक्षिणे' कियदन्तरम् । सीतायाश्च नदीमध्ये पद्मादिहृदपञ्चकम् ॥ ८७ सान्तरं विद्यते येषां पार्श्वयोरुभयोः पुनः । प्रत्येकं पर्वतानां च दशकं दशकं मतम् ॥ ८८ सौवर्णाश्चारुसंस्थाना जिनालयविमण्डिताः । ते सर्वे प्राणिनां मन्ये पुण्यपुञ्जा इव स्थिताः ।। ८९ मेरोर्दक्षिणभागे च तथा सर्वैविचक्षणैः । शाल्मलीवृक्षसंयुक्तं ज्ञातव्यं नान्यथा क्वचित् ॥ ९० एकादशसहस्राणि शतानामष्टकं पुनः । चत्वारिंशद्वयोपेता योजनानां कलाद्वयम् ॥ ९१ उत्तरादिकुरोश्चैष विस्तारः कथितो जिनैः । विस्तारो विस्तृतज्ञानैस्तथा देवकुरोरपि ॥ ९२ सुमेरोः पूर्वदिग्भागे श्रीभद्रसालसद्वनम् । द्वाविंशतिसहस्राणि विष्कम्भं चारुवेदिकम् ॥ ९३ तत्र या वेदिका तस्यः पूर्वं कच्छाभिधं मतम् । सीतोत्तरतटे क्षेत्रं क्षेमानामपुरीयुतम् ॥ ९४ ततो वक्षारनामास्ति पर्वतोऽतः परं महत् । सुकच्छा क्षेत्रमध्ये च चारुक्षेमपुरीयुतम् ॥ ९५ विभङ्गाख्या ततः सिन्धुस्तस्याः पूर्वं सुपुष्कलम् । महाकच्छाभिषं क्षेत्रमरिष्टाख्यपुरी' युतम् ॥९६
( युग्मकपर्वत तथा सौ सुवर्णपर्वत । ) - सीताके दो तटोंपर ' युग्मक ' नामसे प्रसिद्ध और मुनियोंद्वारा वर्णन किये हुए दो पर्वत हैं जिनको यमकपर्वतभी कहते हैं । उन दो युग्मक पर्वतोंके दक्षिणदिशा में कुछ अन्तर चले जानेसे सीतानदीके मध्य में पद्मादिक पांच हृद हैं, जो कि अन्तरसहित हैं ॥। ८६-८७ ।।
प्रत्येक सरोवरके दोनों तटपर दश दश पर्वत है । वे सुवर्णके हैं और उनकी आकृति सुंदर हैं । तथा वे जिनालयोंसे भूषित हैं। मानो वे सर्व पर्वत प्राणियोंके पुण्यपुंज हैं ऐसा मैं ( नरेन्द्रसेनाचार्य ) समझता हूं ॥ ८८-८९ ।।
मेरुके दक्षिणभाग में देवकुरुक्षेत्र में शाल्मलिवृक्षसंयुक्त भूप्रदेश है ऐसा सर्व विद्वान जानें। जैनागममें कहांभी अन्यथा प्रतिपादन नहीं हैं ॥ ९० ॥
( उत्तरकुरू और देवकुरुका विस्तार । ) - विस्तृतज्ञानी जिनेश्वरोंने उत्तरकुरु भोभूमिका विस्तार ग्यारह हजार आठसौ बियालीस योजन और दो कला कहा है। इतनाही विस्तार देवकुरुकाभी कहा है ।। ९१-९२ ।।
( भद्रसालवन और कच्छादि देश तथा वक्षार पर्वत वर्णन । ) - सुमेरुपर्वत की पूर्व दिशा के विभाग में शोभायुक्त प्रशस्त भद्रशाल वन हैं । वह बावीस हजार योजनप्रमाण विस्तारवाला तथा सुंदर वेदिकावाला हैं। उसकी वेदिकाकी पूर्व दिशा में कच्छ नामक देश है। वह सीतानदीके उत्तर तटपर है । उसमें क्षेमापुरी नामक नगरी ( राजधानीका स्थान ) है ।। ९३-९४ ।।
२ तदनन्तर वक्षार नामका महान् पर्वत है। इसके अनन्तर महान् सुकच्छ नामक देश है । उसमें क्षेमपुरी नामक सुंदर राजधानी है ।। ९५ ।।
३ इसके अनन्तर विभंगा नामको नदी है । उसकी पूर्व दिशामें विस्तृत महाकच्छ नामक देश है । और उसकी राजधानी वरिष्टा नामकी नगरी है ॥ ९६ ॥
१ आ. सत्पर्वतद्वन्द्वात्. २ आ. तेषां
३ आ. रिष्टादिनगरी.
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