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सिद्धान्तसारः
(७. ६१
हिमवत्पर्वतात्प्रोक्तो महादिहिमवान्' शुभः। द्विगुणोत्सेधसंयुक्तो विशुद्धतरदर्शनः ॥ ६१ सहस्राणि तु चत्वारि योजनानां शतद्वयम् । दशाधिकश्च विस्तारो महाहिमवतो मतः॥ ६२ तयोर्मध्येऽतिविस्तीर्ण क्षेत्र हैमवतं महत् । तन्मध्ये नाभिपूर्वत्वान्नाभिपूर्वोऽस्ति पर्वतः ॥ ६३ योजनानां हि तत्क्षेत्रं सहस्रद्वयमायतम् । शतं च पञ्चभिर्युक्तं कलाः पञ्च तथा पुनः ॥ ६४ जघन्या भोगभूमिस्तत्कल्पवृक्षसमन्वितम् । पल्योपमायुषस्तत्र क्रोशैकोत्सेधमानवाः ॥ ६५ । हरिकान्ता नदी तस्मान्महापद्महृदात्पुनः । उत्तरेण विनिर्गत्य नाभि मुक्त्वार्द्धयोजनम् ॥ ६६ रोहिनद्याः स्वरूपेण द्विगुणा समुदायतः । अनेकाश्चर्यसंयुक्ता पश्चिमं याति वारिधिम् ॥ ६७ निषधस्थमहागाधतिगिञ्छहृदनिर्गता। हरिनामनदी याति पूर्ववत्पूर्ववारिधिम् ॥ ६८ महापद्महृदात्सोऽपि तिगिञ्छो द्विगुणो मतः । धृतिदेवीनिवासश्च पुण्डरीकसमन्वितः ॥ ६९
( हैमवत जघन्यभोगभूमिका वर्णन । )- हिमवत्पर्वतसे शुभ और विशुद्धतर-अतिशय शुभ्र वर्णका धारक महाहिमवान् पर्वत द्विगुण ऊंचाईवाला है । अर्थात् दोसौ योजनप्रमाण ऊंचा है। इस पर्वतका विस्तार चार हजार दोसौ दस योजनप्रमाण है । हिमवान् और महाहिमवान् इन दो पर्वतोंके बीचमें महान् हैमवतक्षेत्र है वह अतिविस्तीर्ण है । इस क्षेत्रकी मानो नाभि ऐसा नाभि पर्वत ठीक बीच में है । हैमवतक्षेत्र दो हजार एकसौ पांच योजन और पांच कलायुक्त है। यह हैमवतक्षेत्र जघन्य भोगभूमि है। इसमें दश प्रकारके कल्पवृक्ष हैं । उनसे यहां के भोगभूमिजोंकी इच्छायें पूर्ण होती हैं। यहां के भोगभूमिजोंकी आयु एक पल्यकी कही हैं। उनकी ऊंचाई एक कोसकी है। क्षेत्रकी दीर्घता दो हजार एकसौ पांच योजनप्रमाणकी है । तथा पांच कला अधिक है ।। ६१-६५ ॥
( हरिकान्ता नदीका वर्णन । )- उस महापद्मसरोवरसे हरिकान्ता नामक नदी उत्तर तोरणद्वारसे निकलती है। नाभिपर्वतको अर्धयोजन अन्तरसे छोडकर अनेक आश्चर्योसे युक्त होती हुई पश्चिम समुद्रको जाकर मिलती है । यह हरिकान्ता नदी रोहिनदीके समान है अर्थात् दीर्घता, अवगाह, परिवार नदियोंकी संख्या आदिक बातें रोहित नदीके समान है ॥ ६६-६७ ॥
( निषधपर्वत, तिगिञ्छ सरोवर और हरिनदीका वर्णन । )- निषधपर्वतके महान् और अगाध ऐसे तिगिञ्छ सरोवरसे निकली हुई हरित् नामकी नदी पूर्वनदीके समान अर्थात् हरिकान्ता नदीके समान पूर्वसमुद्र में जाकर प्रवेश करती है ।। ६८ ॥
महापद्म- सरोवरसे वह तिगिञ्छ सरोवरभी द्विगुण है अर्थात् चार हजार योजन दीर्घ और दो हजार योजन चौडा तथा चालीस योजन अवगाहवाला है । इस सरोवरके मध्यभागमें जो कमल है, उसके महलमें धृति देवीका निवास है। इसके आसमन्तात् अनेक कमल परिवार है ॥ ६९॥
१ आ. हिमवच्छभः २ आ. मतम्
३ आ. अर्धयोजने
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