________________
-७.६०)
सिद्धान्तसारः
हिमवानुदयेऽभाणि योजनानां शतं पुनः । सहलसद्विपञ्चाशत्कला द्वादश विस्तरात् ॥५४ हिमवन्मस्तकस्थानपद्मादिकहृदात्पुनः । रोहितास्या नदी रम्या निःसरत्युत्तरेण सा ॥ ५५ योजनार्धन सन्त्यज्य नाभिपर्वतमुत्तमम् । तमर्धदक्षिणं कृत्वा पश्चिमं याति वारिधिम् ॥५६ गंगासिन्धुनदीसक्तस्वरूपाद्विगुणा श्रिता' । स्वरूपेण स्वरूपं कि वर्ण्यतेऽस्याः कवीश्वरः ॥५७ महाहिमवतः साधुमस्तकस्थात्सुशोभनात् । महापद्मदाद्रोहिनदी निर्गत्य गच्छति ॥५८ नाभिदक्षिणतो मुत्क्वा पर्वतं योजनार्द्धतः। रोहितास्यास्वरूपा च पूर्वस्यां याति वारिधौ॥५९ पद्मादिकहृदात्सोऽयं महापद्महृदो महान् । न्हीदेवता निवासोऽयं द्विगुणोऽभाणि सूरिभिः॥६०
हिमवान् पर्वतका उदय अर्थात् ऊंचाई सौ योजनोंकी कही है । और उसका विस्तार एक हजार बावन योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे बारह भाग अर्थात् बारह कला इतना है ॥ ५४॥
हिमवत्पर्वतके मस्तकपर जो पद्मसरोवर है, उसके उत्तरतोरणद्वारसे रोहितास्यानामक रमणीय महानदी निकली है ॥ ५५ ॥
___ वह नदी उत्तम नाभिपर्वतसे आधा योजनप्रमाण दूर रहकर तथा उसको दूरसे आधी प्रदक्षिणा देकर पश्चिम समुद्रमें प्रविष्ट हुई है ॥ ५६ ॥
गंगानदी और सिंधु नदीके जो स्वरूप हैं उससे इसका विस्तार दुगुना है, अर्थात् साडेबारह योजन विस्तार इस नदीका है । एक योजनप्रमाण इसकी धाराकी मोटाई है । इस नदीका अवगाह उत्पत्ति स्थानमें एक कोसका है और प्रवेशस्थानपर अवगाह ढाई योजनका है। उत्पत्तिस्थानमें इसकी चौडाई साडेबारह योजनोंकी है और मुखमें सवासौ योजन विस्तार है। इत्यादि स्वरूप गंगानदीके स्वरूपसे द्विगुण है । गंगानदीके स्वरूपसे इसका स्वरूप कवीश्वरोंके द्वारा क्या कहा जावेगा ? ॥ ५७ ॥
( महाहिमवान और महापभ्रसरोवरका वर्णन । )- महाहिमवत्पर्वतके सुंदर और पवित्र मस्तकपर जो महापद्मसरोवर है उससे रोहित् नामक नदी निकलकर नाभिपर्वतके समीप जाती है। उसको आधा योजनके फासलेपर प्रदक्षिणा देकर उसे छोडकर आगे बहती है और पूर्व दिशामें समुद्रमें प्रवेश करती है । इसका स्वरूप, अवगाह, विस्तार सबकुछ रोहितास्या नदीके समान है ॥ ५८-५९॥
महापद्महृद पद्मसरोवरसे बड़ा है अर्थात् उसकी लंबाई, विस्तार, अवगाह दुगुने है। इस महापद्मसरोवरमें महापद्मनामक कमलके बीचमें सुंदर प्रासादमें ह्री देवीका निवासस्थान है। वह पा कमलस्थित प्रासादसे द्विगुणप्रमाणका है ऐसा आचार्योंने कहा है ।। ६० ।।
१. आ. मता, S. S. 21.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org