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________________ १६०) सिद्धान्तसार: ( ७. ४७ तमित्रायां विशालायां मार्गान्निर्गत्य गच्छति । आर्यखण्डमभिव्याप्य किञ्चित्पूर्वपयोनिधौ ॥४७ चतुर्दशसहस्रैः सा नदीनां परिवारिता । प्रवेशे विस्तृता सार्धं द्विषष्टिर्योजनानि च ॥ ४८ विस्तरेणावगाहेन परिवारप्रदेशिताः ' । गङ्गावत्सिन्धुरप्यस्ति भारतेऽत्र महानदी ।। ४९ आरोपितमहाचापसमाकारं सुविस्तरम् । नदीभ्यां विजयार्द्धेन षट्खण्डं भारतं भवेत् ॥ ५० विस्तारेण तदेव स्याद्योजनानां शतानि च । पञ्चैव हि षड्विंशत्या सहितानि कलाश्च षट् ॥५१ पद्मनामहृदः पूतो दीर्घेर्णेकसहस्रकम् । योजनानां तदर्थं स्याद्विस्तरेणेति विस्तृतः ॥ ५२ तच्छ्रीदेवी निवासैकस्थानं तन्मध्यगं महत् । सत्पद्मं विद्यते चारु चारुता रदलाकुलम् ॥ ५३ इस पर्वत में दो गुहायें हैं उनके नाम तमिस्रागुहा और खंडप्रपातागुहा । विशाल मिस्र गुहा में से जो गंगानदीको मार्ग मिला उससे वह निकलकर आर्यखंडमें आई और उसे 'कुछ व्याप्त करके पूर्व समुद्र में उसने प्रवेश किया । चौदह हजार परिवारनदियोंसे मिलकर उसने जहां प्रवेश किया है, उस स्थानमें वह साडेबासठ योजनप्रमाण विस्तृत हुई है ।। ४७-४८ । जैसा गंगा नदीका अवगाह और विस्तार है तथा जितनी परिवारनदियाँ उसको मिली हैं, वैसाही अवगाह और विस्तार सिंधुनदीका है तथा उतनीही परिवार नदियां सिंधुको मिली हैं । वह सिंधुनदी भी इस भारतमें आर्यखंडमें आकर पश्चिम समुद्र में प्रविष्ट हुई है ।। ४९ ।। ( भरतक्षेत्रका संक्षेपसे विवरण । ) - यह भरतक्षेत्र सज्य किये हुए महाधनुष्य के समान आकृतिको धारण करनेवाला है और उत्तम विस्तारवाला है । दो नदियोंसे (गंगा और सिंधु ) तथा विजयार्द्ध - पर्वत से इस भरतके छह विभाग हुए हैं । स्पष्टीकरण - भरतक्षेत्रके बिलकुल मध्यमें विजयार्ध पर्वत पूर्व से पश्चिम दिशातक सीधा दीवारके समान खडा हुआ है । इससे भरत के दक्षिण भरत और उत्तर भरत ऐसे दो विभाग हुए हैं । तथा गंगानदी और सिन्धु नदी ये दो नदियां उत्तर भरत और दक्षिण भरत के बीच मेंसे बहती हुई लवणसमुद्रको जाकर मिली हैं, इससे उत्तर भरतके तीन विभाग और दक्षिण भरतके तीन विभाग होनेसे भरतक्षेत्र षट्खण्ड युक्त हुआ है ॥ ५० ॥ यह भरतक्षेत्र विस्तारसे पांचसौ छब्बीस योजन और छह कला प्रमाण है । अर्थात् एक योजनके उन्नीस भागों में से छह भाग लेना चाहिये इतना भरतखण्डका विस्तार है ॥ ५१ ॥ ( पद्महृदका और हिमवान् पर्वतका वर्णन । ) - हिमवान् पर्वतपर पद्मनामका अनादि निधन और पवित्र सरोवर है । वह एक हजार योजनप्रमाण लंबा है । तथा पांचसी योजनप्रमाण चौडा है । इस प्रकार उसका विस्तार कहा है । यह सरोवर श्रीदेवीका मुख्य निवासस्थान है । इस सरोवर के बिलकुल बीच में प्रशस्त और [सुंदर पद्मनामक महाकमल है वह सुंदर और प्रकाशमान दलोंसे पूर्ण है ।। ५२-५३ ।। १ आ. तिमिस्त्रायां Jain Education International २ आ. गंगा ३ आ. प्रदेशतः ४ आ. णाति ५ दलसङ्कुलम् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001846
Book TitleSiddhantasarasangrah
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorJindas Parshwanath Phadkule
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1972
Total Pages324
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size23 MB
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