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१५८)
सिद्धान्तसारः
(७. २७
तत्र सन्ति विचित्राणि सप्त क्षेत्राणि सर्वतः। भरतो हिमवर्षश्च हरिवर्षः सुशोभनः ॥ २७ विदेहो रम्यको नाम हैरण्यवतमायतम् । ऐरावतं ततः क्षेत्रं विद्यते विस्मयावहम् ॥ २८ पूर्वापरायता अस्य' पर्वतास्तद्विभाजिनः । हिमवानाद्य इत्येवं महादिहिमवान्परः ॥ २९ निषधश्च तृतीयोऽसौ चतुर्थो नील इष्यते । रुक्मी च शिखरी तस्मात् षडेते मणिपार्श्वकाः॥३० हिमवान्हेमवर्णोऽसौ पीतवस्त्रनिभः शुभः । शुक्लः सर्वोऽपि सर्वत्र द्वितीयो द्युतिमानयम् ॥ ३१ तपनीयमयस्तावत्तृतीयश्च चतुर्थकः । स वैडूर्यमयोऽभाणि मयूरग्रीवसन्निभः ॥ ३२ रजतैकमयो ज्ञेयः पञ्चमः पर्वतो महान् । षष्ठो हेममयस्तस्मात्कथ्यते कौतुकावहः ॥ ३३ तेषामुपरि विद्यन्ते सरांसि हृदनामतः । पद्मो महादिपद्मश्च तिगिच्छः केसरी ततः ॥ ३४ महादिपुण्डरीकश्च पुण्डरीक इति ध्रुवाः । हृदाः सर्वेऽपि विद्यन्ते नदीनां निर्गमाश्रयाः ॥ ३५ हिमवन्मस्तकस्थाच्च पद्मनाम्नो हृदानदी । गङ्गति विश्रुता पूर्वतोरणेन प्रवर्तते ॥ ३६
( भरतादिक सप्तक्षेत्रों के नाम।)- इस जम्बूद्वीपमें विचित्र आश्चर्यावह भरतादिक सात क्षेत्र सर्वत्र हैं। अर्थात् इन क्षेत्रोंसे युक्त जम्बूद्वीपका भूदेश है । इनको छोडकर अन्य क्षेत्र नहीं हैं । इन क्षेत्रोंके नाम-भरत, हिमवर्ष-हैमवतक्षेत्र, सुंदर हरिवर्ष-हरिक्षेत्र, विदेहक्षेत्र, रम्यकक्षेत्र, दीर्घ हैरण्यवतक्षेत्र, और तदनंतर विस्मय उत्पन्न करनेवाला ऐरावतक्षेत्र ऐसे सात क्षेत्र हैं ।। २७-२८ ॥
(हिमवदादिक छह कुलपर्वत । )- इस जम्बूद्वीपके जो हिमवदादि छह पर्वत हैं वे भरतादिक क्षेत्रोंके विभाग करनेवाले होनेसे उनको वर्षधर कहते हैं । अर्थात् भरतादिक वर्षकोक्षेत्रको विभक्त रखकर धारण करनेवाले ये पर्वत हैं। ये पर्वत पूर्वदिशासे पश्चिम दिशातक दीर्घ हैं। इनमें पहला पर्वत हिमवान हैं । दूसरा पर्वत महाहिमवान है। तीसरा पर्वत निषध, चौथा नील पर्वत है, पांचवां पर्वत रुक्मी, और छठा शिखरी पर्वत हैं। इन छहों पर्वतोंके दोनों पसवाडे नाना मणियोंसे विचित्रित हैं । हिमवान् पर्वत सुवर्णवर्णका है, पीले वस्त्रके समान वह दिखता है। दूसरा महाहिमवान् पर्वत है । वह सर्वत्र संपूर्ण शुक्ल है। तीसरा कान्तिमान् निषध पर्वत सुवर्णमय है । चौथा नीलपर्वत वैडूर्यमणिओंसे खचित् अर्थात् नील वर्णका है । मोरके कण्ठके समान नील रंगका है । पांचवा महान् पर्वत सर्व बाजुओंसे रजतमय है चांदीका है। उसको रुक्मी पर्वत ऐसा नाम है । छठा पर्वत शिखरी है ; वह सुवर्णमय है और आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला है॥ २९-३३ ॥
(हिमवदादि पर्वतोंपरके सरोवरके नाम । )- उन पर्वतोंपर हृद नामके छह सरोवर हैं। उनके नाम पद्म, महापद्म, तिगिञ्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ऐसे हैं। ये सरोवर अनादिनिधन-नित्य हैं, तथा गंगादिनदियोंके उत्पत्तिके आधारस्थान हैं ॥ ३४-३५ ।।
( पद्मसरोवरसे निकली हुई गंगानदीका वर्णन । )- हिमवत्पर्वतके मस्तकपर जो पद्म
१ आ. स्तमपीषत्
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