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-७. २६)
सिद्धान्तसारः
(१५७
क्षीरोदकवरो यस्तु समुद्रस्तेषु विश्रुतः । खण्डसम्मिश्रसत्क्षीररसास्वादाम्बुपूरितः॥२१ सुगन्धघृतसंवादितोयसन्दोहपूरितः । घृतादिकवरो वयः कथितो जिननायकैः ॥ २२ मध्विक्षुरससंवादिजलजातप्रपूरिताः । शेषाः सर्वेऽपि विज्ञेयाः समुद्राः श्रीजिनागमात् ॥ २३ एषु द्वीपसमुद्रेषु पर्वताद्युपरि स्थिताः । व्यन्तराणां समावासा विद्यन्ते विविधाः पुनः ॥ २४ लवणोदे च कालोदे स्वयम्भूरमणाम्बुधौ । मत्स्यादयः प्रभूताः स्युर्न परेषु कदाचन ॥ २५ मेरुनाभिः शुभो वृत्तो मध्यस्थो' हि यतो महान् । जम्बुद्वीपस्ततोऽप्येवं कथयामि विशेषतः॥२६
दकवर नामक समुद्र समुद्रोंमें प्रसिद्ध है वह खाण्डका मिश्रण जिसमें है ऐसे दूधके रसके आस्वादको धारण करनेवाले जलोंसे भरा हुआ है । २०-२१॥
श्रेष्ठ ऐसे जिननायकोंने-वृषभादि तीर्थकरोंने घृतवर-समुद्र सुगंधित घीके समान आस्वादवाले जलसमूहोंसे भरा हुआ है ऐसा कथन किया है। बाकीके समस्त समुद्र मधु और ईखके रसका स्वाद धारण करनेवाले जलसमूहोंसे भरे हुए हैं ऐसा श्रीजिनेश्वरके आगमसे जानना चाहिये ॥ २२-२३ ॥
( व्यंतरोंके आवासस्थान । )- इन द्वीपोंमें और समुद्रोंमें और विजयाद्ध, कुलपर्वत, मेरुपर्वत और इतर पर्वतोंपर व्यंतरोंके आवासस्थान हैं तथा और भी व्यंतरोंके नाना निवासस्थान हैं । स्पष्टीकरण-इस जम्बूद्वीपसे आगे असंख्य द्वीपसमुद्रोंको उल्लंघकर ऊपरके खरभागमें राक्षसोंको छोडकर सात व्यंतरोंके निवासस्थान हैं, अर्थात् किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, भूत और पिशाच ऐसे व्यंतर जातियोंके निवासस्थान हैं। राक्षसोंके निवासस्थान पङ्कबहुलभागमें हैं । तथा इस भूतलपरभी द्वीप, पर्वत, समुद्र, देश, ग्राम, नगर, त्रिक-तीन मार्ग जहांसे निकलते हैं उसको त्रिक कहते हैं, चतुष्क- जहांसे चार मार्ग निकलते है ऐसा स्थान, गृहका अंगण, तथा विस्तत मैदान, जलाशय, उपवन, देवमंदिरादिक अनेक निवासस्थान हैं, जहां व्यंतरदेव रहते हैं। तथा गंगादिक नदियोंमें व्यंतरदेवदेवियोंके निवासस्थान हैं। समुद्रमें मागध, प्रभास आदिक व्यंतरदेव रहते हैं । विजयाध पर्वतपर व्यतरोंके निवासस्थान हैं । इस प्रकार व्यंतरोंके अनेक निवासस्थान हैं ।। २४ ॥ ( तत्त्वार्थवार्तिक अ. ३ रा )
( मत्स्य कौनसे समुद्रोंमें हैं ? उत्तर)- लवणोदसमुद्र, कालोदसमुद्र और स्वयम्भूरमण समुद्र इन तीन समुद्रोंमें मत्स्यादिक जलचर प्रभूत है। परंतु इनको छोडकर अन्य पुष्करादि समुद्रोंमें ये जलचर प्राणी कदापि उत्पन्न नहीं होते ॥ २५ ॥
( जम्बूद्वीपका विशेषतासे वर्णन । )- यह जम्बूद्वीप शुभ, गोल-सूर्यमंडल के समान है। असंख्यात द्वीपसमुद्रों के बीच में है। इस जम्बूद्वीपके बिलकुल बीच में मेरुपर्वत है, वह इसकी मानो नाभि है । ऐसे महान् द्वीपका मैं ( नरेन्द्रसेनाचार्य ) विशेषतासे वर्णन करता हूं ।। २६ ।।
१ मध्यस्थोऽस्ति यो
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