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सिद्धान्तसारः
(७. १२
लक्षयोजनमानेन जम्बूद्वीपः प्रमाणभाक् । लक्षद्वयप्रमाणेन लवणोदेन वेष्टितः ॥ १२ चतुर्लक्षप्रमाणोत्थघातकोखण्ड इत्यपि । लक्षाष्टकप्रमाणेन कालोदवलयान्वितः ॥ १३ ततः षोडशलक्षेकविस्तारः पुष्कराभिधः । मानुषोत्तरशैलस्य वलयेन द्विधाकृतः ॥ १४ पुष्कराख्यसमुद्रण द्विगुणेनाभिवेष्टितः । द्विगुणा द्विगुणास्तस्मात्सन्त्यन्ये द्वीपसागराः ॥ १५ वलयाकृतयः सर्वे तिर्यग्लोकव्यवस्थिताः । स्वयम्भूरमणो यावद्द्वीपश्चान्तिमको भवेत् ॥ १६ समुद्रा अपि सर्वेऽपि वलयाकृतयः परे । विद्यन्ते द्वीपनामानो मुक्त्वाद्यद्वितयं पुनः ॥ १७ द्रवल्लवणसंवादिरसतोयभृतौ पतौ । लवणोदस्तु कालोदः सत्यं तोयरसः स्मृतः ॥१८ पुष्कराम्बुधिरप्यैवं स्वयम्भूरमणोऽपि च । उदकैकरसौ ज्ञेयौ जिनागमनिवेदितौ ॥ १९ वारुणीवर इत्येवं यस्य नामेह विश्रुतम् । मदिरैकरसास्वादतोयसंपूरितः स च ॥ २०
( जम्बूद्वीपादि द्वीपसमुद्रोंका विस्तारवर्णन ।)- विस्तारसे एक लाख योजन प्रमाणको धारण करनेवाला जम्बूद्वीप, दो लाख प्रमाण युक्त लवणोद समुद्रसे वेष्टित है । इस लवणसमुद्रको चार लाख योजन प्रमाणको धारण करनेवाले धातकी खंडने वेष्टित किया है। इसको आठ लाख योजनका विस्तार धारण करनेवाले कालोद समुद्रने घेरा है। इस कालोदसमुद्रको घेरनेवाला द्वीप पुष्कर नामका है। वह सोलह लाख योजन विस्तारवाला है । उसके बीच में मानुषोत्तर पर्वतका वलय है। उससे वह द्विधा हुआ है अर्थात् उसके दो भेद हुए हैं। इस पुष्करद्वीपको पुष्करवरनामक समुद्रने जोकि बत्तीस लाख योजन विस्तारका है, घेरा है। इसके अनन्तर समुद्रसे द्विगुण विस्तारवाला द्वीप और द्वीपसे दुगुने विस्तारवाला समुद्र ऐसे द्वीपसमुद्र हैं, वे सब वलायाकार हैं और तिर्यग्लोकमें विशिष्ट अवस्थासे व्यवस्थित हैं । उनका वर्णन आगममें हैं। इस तिर्यग्लोकमें अन्तिमद्वीप स्वयंभूरमण नामवाला है। सब समुद्रभी द्वीपके समान वलयाकार हैं । जो समुद्र हैं वे द्वीपके नामवाले है परंतु जम्बूद्वीप और धातकीखंड ये दो द्वीप छोडकर अर्थात् जम्बूसमुद्र, धातकी समुद्र ऐसे नाम पहिले और दूसरे समुद्रके नहीं है पहिले समुद्रका नाम लवणोदसमुद्र है और दूसरे समुद्रका नाम कालोद है परंतु उनके आगेके समुद्रोंके नाम द्वीपके नामका अनुसरण करते हैं अर्थात् पुष्करद्वीप, पुष्करसमुद्र, वारुणीवर द्वीप, वारुणीवर समुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरसमुद्र इत्यादिमें सर्वत्र द्वीपके नामही समुद्र के नाम हैं ॥ १२-१७ ॥
(पहिले दो समुद्रोंके जलका स्वाद । )- द्रवीभूत नमकके समान स्वादवाला पानी लवणसमद्रका है। और कालोदका पानी पानीके स्वादकाही माना है। पुष्करसमद्रभी जलस्वादवाला है। तथा स्वयंभूरमण समुद्र का पानीभी जलस्वादवालाही है ऐसा जिनागमने कहा है ॥ १८-१९ ॥
( अन्यसमुद्र के जलास्वादोंका वर्णन ।)- इस मध्यलोकमें जिसका नाम वारुणीवर ऐसा प्रसिद्ध है वह केवल मदिरारसके आस्वादको धारण करनेवाले जलोंसे भरा हुआ हैं । जो क्षीरो
१ आ. सुवृत्तभाक् २ आ. परा: ३ संवाद
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