________________
सप्तमः परिच्छेदः
अथ तिर्यडमहालोकं कथयामि यथागमम् । तिर्यङमानवदेवानामानन्दैकप्रदायकम् ॥ १ जम्बूद्वीपादयो द्वीपाः शुभनामान इत्यमी । लवणोदादयः सर्वे समुद्रास्तत्र विश्रुताः ॥ २ जम्बूद्वीपस्ततो द्वीपो घातकोखण्ड इत्यपि । पुष्कराख्यस्तृतीयः स्याच्चतुर्थो वारुणीवरः ॥३ पञ्चमः क्षीरनामा च षष्ठो घृतवरो मतः । सप्तमो मुनिभिर्गोतस्तथेक्ष्वादिवरो महान् ॥ ४ नन्दीश्वरस्तथा पूतश्चाष्टमो नवमः पुनः । अरुणाख्य इति ख्यातस्ततोऽरुणवरो महान ॥५ अरुणादिवराभासो द्वीपश्चैकादशो मतः । द्वादशः कुण्डलाख्यश्च कुण्डलादिवरः परः ॥६ चतर्दशस्तदाभासः कथितो मनिभास्करैः। शडस्ततः परो ज्ञेयस्तस्माच्छडखवरः परः ॥ ७ ततः शङखवराभासो रुचकस्तत्परो वरः। रुचकादिवरस्तस्माद्रचकाभास इत्यपि ॥८
भुजगः कथितो' द्वीपो भुजगादिवरस्ततः। भुजगादिवराभासः कुशः कुशवरो महान् ॥९ कुशाभासश्च विज्ञेयः क्रौञ्चः क्रौञ्चवरस्ततः । स क्रौञ्चादिवराभासो नामतोऽमी निवेदिताः॥१० अतः परमसङख्याता द्वीपाः सन्ति सुशोभनाः । यावदन्तिमको द्वीपः स्वयम्भूरमणाभिधः ॥११
( सातवा अध्याय)
अब मैं ( पंडिताचार्यनरेन्द्रसेन ) आगमका अनुसरण करके तिर्यंच, मनुष्य और देवोंको आनन्द देनेवाले तिर्यङमहालोकका वर्णन करता हूं ॥ १ ॥
इस मध्यलोकमें जो शुभनाम हैं उनको धारण करनेवाले सर्व जम्बूद्वीपादिक प्रसिद्ध द्वीप हैं और शुभनाम धारण करनेवाले लवणोदादिक प्रसिद्ध समुद्र हैं ॥ २ ॥
(द्वीपोंके नाम । )- पहला जम्बूद्वीप है तदनन्तर धातकीखण्डद्वीप है। तीसरा पुष्करद्वीप है। चौथा वारुणीवर द्वीप, पांचवां क्षीरवरद्वीप, छठा धृतवर द्वीप, सातवां महान्द्वीप इक्षुवर है। आठवे द्वीपका नाम नन्दीश्वर है । नौवां द्वीप अरुणनामका है। दसवां द्वीप अरुणवर है। ग्यारहवां द्वीप अरुणवराभास नामका है । बारहवां द्वीप कुण्डल नामवाला है। कुण्डलवरद्वीप तेरहवां है । मुनिओंमें सूर्यसमान तेजस्वी गणधरोंने चौदहवां द्वीप ऐसे कुंडलवरा भास कहा है। तदनंतर शंख नामक द्वीप पंद्रहवां है। इसके अनंतर सोलहवे द्वीपका नाम शंखवर है । इसके अनंतर शंखवराभास, तदनन्तर रुचक, पुनः रुचकवर, तदनंतर वीसवां द्वीप रुचकाभास नामका है । इसके अनंतर भुजगद्वीप है। फिर भुजगवरद्वीप है । तदनंतर भुजगवराभास नामका द्वीप है। इसके अनंतर कुशद्वीप, तदनंतर महान् कुशवरद्वीप है। पुनः कुशवराभासद्वीप है । पुनः क्रौंचद्वीप हैं । तदनंतर क्रौंचवरद्वीप है । इसके अनंतर क्रौंचवराभास द्वीप है ऐसे नामोल्लेख करके अठ्ठाईस द्वीप कहे हैं । इन द्वीपोंके अनन्तरभी सुंदर ऐसे असङ्ख्यातद्वीप हैं। और वे अन्तिमद्वीपतक हैं और अन्तिमद्वीपका नाम स्वयंभूरमण हैं ॥ ३-११ ॥
१ आ. कथ्यते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org