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-६. ५८)
सिद्धान्तसारः
(१४९
पञ्चम्यां पञ्चमेऽभाणि य उत्सेधः स आदिमे। षष्ट्यां च प्रतरे प्राज्ञैः कथितो यतिनायकैः॥५० प्रतरे प्रतरे वृद्धिस्ततः सार्धद्वयान्विता । जायते धनुषां षष्ठिस्तृतीयं यावता भवेत् ॥ ५१ उत्सेधो जायते षटयां तृतीये प्रतरे पुनः । पञ्चाशदधिकं तावद्धनुषां च शतद्वयम् ॥ ५२ सप्तम्यां' प्रतरे तावन्नारकाणां समुच्छ्यः । ख्यातः पञ्चाशतान्येषां धनुषां यतिनायकैः ॥५३ एकस्त्रयस्तथा सप्त दश सप्तदशापि वा। द्वाविंशतिस्त्रास्त्रिशत्सागरास्तासु जीवितम् ॥ ५४ प्रथमायां यदुत्कृष्टं द्वितीयायां हि तत्पुनः । जघन्यमिति सर्वासु क्रमोऽयं वणितो बुधैः ॥ ५५ आय रत्नप्रभायां तत्प्रथमे प्रतरे मतम् । दशवर्षसहस्राणि नवतिः परमं पुनः ॥ ५६ दशलक्षं जघन्यं स्याद्वितीये नवतिः परम् । तदायु रकाणां हि कथितं जिननायकैः ॥ ५७ जघन्यं नवतिलक्षास्तृतीये कथितं जिनैः । उत्कृष्टं पूर्वकोटी" स्यादायुस्तत्र हतात्मनाम् ॥ ५८
(षष्ठनरकमें नारकियोंका शरीरोत्सेध।)-पांचवे नरकके पांचवे प्रतरमें जो शरीरोत्सेध नारकियोंका कहा है, वही छठी पृथ्वीमें पहले प्रतरमें विद्वान यतीश्वरोनें कहा है । इसके अनंतर प्रत्येक प्रतरमें साडेबासष्ट धनुष्य प्रमाण शरीरोत्सेध बढता है । वह बढते बढते तृतीय प्रतरमें ढाईसौ धनुष्यप्रमाण शरीरका उत्सेध हुआ है ॥ ५०-५२ ॥
( सातवे नरकमें नारकियोंका शरीरोत्सेध । )- सातवे नरकके प्रथम प्रतरमें नारकियोंकी शरीरकी ऊंचाई पांचसौ धनुष्य है ऐसा यतिनायकोंने कहा है ॥ ५३ ॥
( सात नरकोंमें नारकियोंके आयुष्यका वर्णन ।)- प्रथम नरकको आरंभकर सातवे नरकतक क्रमसे नारकियोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सतारह सागर, बावीस सागर और तेहतीस सागर प्रमाण है । पहले नरकमें जो उत्कृष्ट आयु कही है वह दूसरे नरकमें जघन्य है। इस प्रकारसे सातवे नरकतक विद्वानोंने आयुःक्रमका वर्णन किया हैं ॥ ५४-५५ ।।
(पहले नरकके प्रत्येक प्रतरमें जघन्य और उत्कृष्ट आयुका प्रतिपादन।)- पहले नरकके पहले प्रतरमें दस हजार वर्षोकी जघन्य आयु है और उत्कृष्ट आयु नब्बे हजार वर्षकी है ॥ ५६ ॥
__ दूसरे प्रतरमें नारकियोंकी जघन्य आयु नब्बे हजार वर्षकी है और उत्कृष्ट आयु दस लाख वर्षकी है ऐसा जिनेश्वरोंने कहा है। तीसरे प्रतरमें दीन नारकियोंकी जघन्य आयु नब्बे लक्ष है और उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटिवर्ष-प्रमाण है। चौथे प्रतरमें एक पूर्वकोटि आयु जघन्य है और उत्कृष्ट आयु सागरका दसवा भाग है। चतुर्थ प्रतरमें जो उत्कृष्ट आयु है, वह पांचवे प्रतरमें जघन्य समझना चाहिये। पांचवे प्रतरमें सागरका जो दशमअंश जघन्य आयु कही है उसके दो अंश प्रमाण आयु उत्कृष्ट है । छठे प्रतरमें जघन्य आयु सागरके दश अंशमें दो अंश है और उत्कृष्ट तीन अंश है। आगेके प्रतरोंमें एक एक अंशकी वृद्धि होती है ऐसा निश्चय हैं । इसका स्पष्टीकरण ऐसा है-सातवे
१ आ. पञ्चम्याः २ आ. षष्ठ्याः
३ आ. सप्तम्याः
४ धृतिनायक: ५ आ. पूर्वकोटि:
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