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सिद्धान्तसारः
(१४७
सप्तम्यां मध्यभागे स्युर्नारका नरकाश्रयाः। अब्बहुलभागेऽन्यासु सर्वास्वेते निवेदिताः ॥ ३० पटलानि भवन्त्येव प्रथमायां त्रयोदश । एकादश नवैतानि सप्त पंच यथाक्रमम् ॥ ३१ द्वितीयायां तृतीयायां चतुर्थ्यां च तथा पुनः। पंचम्यां त्रीणि षष्ठयांचसप्तम्यामेकमेव तत्॥३२युग्मं तत्र सोमंतसंज्ञं स्यात्प्रथमे प्रस्तरे बिलम् । नलोकपरिमाणं तत्प्रथमायां यदिन्द्रकम् ॥ ३३ बिलान्येकोनपञ्चाशच्छणीभूतानि सन्ति' च । चतुर्दिश्वप्यसङख्यातयोजनानि दिशं प्रति॥३४ अष्टाधिका भवेत्तेषां चत्वारिंशद्विदिक्ष्वपि । दिगवस्थितरूपाणां प्रकीर्णान्यन्तरे पुनः ॥ ३५ सर्वाण्यकोनपञ्चाशत्सर्वासु श्वभभूमिषु । पटलानि च तेष्वेव क्रम एवं विवर्ण्यते ॥ ३६ श्रेणिश्रेणिगतं किंतु पटलं प्रति हीयते । एकैकमिति सप्तम्यां यावदेकदिशं प्रति ॥ ३७ प्रथमे प्रतरे तावन्नारकाणां समृच्छ्रयः । प्रथमायां त्रयो हस्ता ज्ञातव्यास्तत्ववेदिभिः ॥ ३८ प्रतरे प्रतरे तावद्विवर्द्धन्ते यथाक्रमम् । सहार्धषट् च पञ्चाशदङगुलाश्च त्रयोदश ॥ ३९
प्रदेश में पटल हैं । सातवे नरकके मध्यभागमें नारकोंके आश्रयस्थान ऐसे नारकावास हैं। अब्बहल भागमें और अन्य सर्व नारकपथ्वीमें ये नारकावास कहे गये हैं।॥ २९-३० ।।
( नरकपटलोंका वर्णन । )- पहिली रत्नप्रभामें तेरह पटल हैं । दुसरीमें ग्यारह पटल हैं। तीसरीमें नौ हैं। चौथीमें सात हैं। पांचवीमें पांच हैं। छठीमें तीन हैं और सातवीमें एक है ॥ ३१-३२ ॥
पहली पृथ्वीमें पहले प्रस्तरमें सीमंत नामक बिल है। वह मनुष्यलोकपरिमाणका पैंतालीस लाख योजन परिमाणका है । पहिले नरकमें वही इन्द्रक बिल है ॥ ३३ ॥
पहले प्रस्तारमें प्रत्येक दिशामें-चार दिशामें उनचास उनचास श्रेणिबद्ध बिल हैं और वे असंख्यात योजनोंके हैं। विदिशाओंमें जो बिलश्रेणि हैं उनमें अडतालीस अडतालीस बिल हैं। दिशा और विदिशाओंके अन्तरालोंमें प्रकीर्णक बिल हैं ॥ ३४-३५ ॥
सर्व नरकोंमें उनचास पटल हैं । अब उनमेंही इस प्रकारसे वर्णन करते हैं ॥ ३६ ॥
एकेक पटलकी श्रेणि श्रेणिमें एक एक बिल कम होता है । इस प्रकार कम होते होते सातवे नरकमें एक एक दिशामें एक एक बिल अवशिष्ट रहता है ।। ३७ ॥
(प्रथमनरकमें नारकियोंके शरीरकी ऊंचाईका वर्णन ।)- पहली पृथ्वीमें पहले प्रस्तारमें नारकियोंके शरीरकी ऊंचाई तीन हाथ है, ऐसा तत्त्वज्ञोंने कहा है ॥ ३८॥
प्रत्येक प्रस्तारमें यथाक्रम ऊंचाई बढती जाती है । तेरहवे प्रस्तारतक साढे छप्पन अंगुलतक बढती जाती है । अर्थात् दो हाथ साढे आठ अंगुल बारह जौतक बढती जाती है । तेरहवे पटलमें सात धनुष्य, तीन हाथ और छह अंगुलप्रमाण नारकियोंके देहकी ऊंचाई है ॥ ३९-४० ॥
१ आ. तस्य च २ आ. एव ३ आ. सहार्धानि च पष्टांशादगुलान्या त्रयोदशम्
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