________________
- ५. १५५ )
( १३७
भवन्ति गर्भजाः सर्वे पोताण्डजजरायुजाः । औपपादिकदेहाश्च देवनारकयोनिजाः ॥ १५० शेषाः सम्मूच्छिनो जीवा भूरिपापपरायणाः । गदिता विविधाकारा बहुदुः खोपजीविनः ॥ १५१ वपुर्गतीन्द्रियज्ञानक्रोधाहारसुसंयमाः । वेदभव्यत्व सम्यक्त्वलेश्येक्षायोगसञ्ज्ञिनः ॥ १५२ जीवा यासु च मार्ग्यन्ते मार्गणा विधिकोविदैः । ता इमा मार्गणा ज्ञेया विचित्रक्रमसंयुताः ॥ १५३ वपुः शरीरमाख्यातं तच्च पञ्चविधं बुधैः । जीवाधारमिदं तस्मान्निगदामि यथाक्रमम् ॥ १५४ औदारिकमिदं रम्यं तथा वैक्रियिकं ' पुनः । आहारकमिहाख्यातं ' तैजसं कार्मणं महत् ॥ १५५
सिद्धान्तसार:
अण्डज - जो प्राणी अण्डोंसे उत्पन्न होते है, उनको अण्डज कहते हैं जैसे पक्षी । उपपाद शिलापर देव अकस्मात् अन्तर्मुहूर्त में तरुणके समान षोडश अलंकारोंसहित उत्पन्न होते हैं । तथा नारकी नरकबिलोंमें अन्तर्मुहूर्तमें उत्पन्न होते हैं । ये देव नारकी औपपादिक देहवाले कहे जाते हैं ।। १४९- १५० ॥
सम्मूच्छिन जीव अतिशय पापोंमें तत्पर रहते हैं । ये सम्मूछिन जीव मातापिताके रक्तवीर्य के बिना उत्पन्न होते हैं। तीनों लोकोंमें ऊपर, नीचे और चारों तरफसे जिनके अवयवोंकी रचना होती है, उनको सम्मूर्च्छन कहते हैं । ये जीव अनेक आकारवाले और बड़े दुःखसे उपजीविका करनेमें तत्पर होते हैं ।। १५१ ।।
( मार्गणाओं के नाम और लक्षण । ) - शरीर- कायमार्गणा, गति, इन्द्रिय, ज्ञान, क्रोध, आहार, सुसंयम, वेद, भव्यत्व, सम्यक्त्व, लेश्या, दर्शन, योग और संज्ञी ये चौदह मार्गणायें हैं
।। १५२ ।।
. कर्मस्वरूप जाननेवाले विद्वानोंकेद्वारा जीव जिनमें ढूंढें जाते हैं उनको मार्गणा कहते हैं, वे मार्गणायें अनेक क्रमसे युक्त हैं ।। १५३ ।
( औदारिकादि पांच शरीरोंका वर्णन । ) - शरीरको वपु कहते हैं और विद्वानोंने उसके पांच भेद बताये हैं । यह शरीर जीवका आधार होनेसे मैं इसका यथाक्रम वर्णन करता
हूं ।। १५४ ।।
औदारिक, तथा रम्यवैक्रियिक, पुनः आहारक और तैजस तथा महान कार्माण ऐसे पांच प्रकारके शरीर कहे हैं । उदारका अर्थ स्थूल है अर्थात् जो शरीर स्थूल है उसको औदारिक कहते हैं । यह शरीर मनुष्य और तिर्यंचोंको होता है । जो शरीर नाना आकृतियोंको धारण करता है जो अनेक छोटा, बडा दृश्य, अदृश्य आदिक विक्रिया करता है उसे वैक्रियिक शरीर कहते हैं । जिनके मनमें सूक्ष्म तत्त्वमें संशय उत्पन्न हुआ है ऐसे प्रमत्तसंयत मुनिराजके मस्तकसे संशयको दूर करनेके • लिये जो शरीर प्रगट होता है उसे आहारक कहते हैं । यह शरीर केवलिभगवानके पास जाता है ।
१ आ. वैक्रियिकमहाद्भुतम् २ आ. ख्यान्ति ३ आ. तथा
S. S. 18.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org