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सिद्धान्तसारः
करकलितममन्दं साधुवृत्तप्रमोदम् । पुरुषमतिशयानः सम्पदो नो ददानः ॥ २६३
इति' श्रीपण्डितनरेन्द्रसेनविरचिते सिद्धान्तसारसंग्रहे मतान्तरनिरूपणं चतुर्थः परिच्छेदः ॥ ४॥
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ष्ट करता है । वह मनुष्य विशाल ऐसे मुनिव्रतोंका आनंद हाथमें धारण करनेवाले पुरुषका अतिशय से अनुकरण करनेवाला होता है । वह भव्य हमें संपत्ति- रत्नत्रयधन प्रदान करें ।। २६३ ॥
श्रीपण्डितनरेन्द्रसेन विरचित सिद्धान्तसारसङ्ग्रह में चार्वाक, वैशेषिक, सांख्य, श्वेतांबरादि मतान्तरोंका निरूपण करनेवाला चौथा अध्याय समाप्त हुआ ॥ ४॥
१ आ. इति सिद्धान्तसारसंग्रहे आचार्यश्रीनरेन्द्रसेनविरचिते चतुर्थः परिच्छेदः
( ४. २६३
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