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-४. ३३)
सिद्धान्तसारः
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नास्तिका निगदन्त्येके जीवाभावविभाविनः । तपस्यन्त्यन्यलोकाय किमर्थं जडबुद्धयः ॥ ३० जीवो नास्ति कियानत्र पदार्थो 'नामगोचरः । भूतात्मकमिदं ज्ञानं केवलं यन्त्रवाहकम् ॥ ३१ भूतोपादान एवायं जायते जनरञ्जकः । कश्चिद्भावस्तमज्ञानाज्जीवभ्रान्त्या वदन्त्यमी ॥ ३२ अचेतनानि भूतानि नोपादानानि चेतने । मिथ्येति गोमयादिभ्यो वृश्चिकाद्युपदर्शनात् ॥ ३३
उसको मिथ्याज्ञान नहीं कह सकते । तथा उसके विषय स्तम्भकुंभादिकभी मिथ्या नहीं है । स्वप्नभी सब बाह्य पदार्थ के अवलम्बनके बिनाही होते हैं ऐसा नहीं समझना चाहिये । स्वप्नभी सत्य और असत्य दो प्रकार के होते हैं । सत्यस्वप्न देवताविशेषसे उत्पन्न किये हुये अथवा अपने पापपुण्यसे किये हुये होते हैं और वे साक्षात् पदार्थसे अव्यभिचारी होते हैं । और कोई स्वप्न परम्परासे अर्थानुकूल होते हैं । स्वप्नमें राजादिकोंका दर्शन होनेसे कुटुम्बवृद्धि आदिक फल मिलता है । वातपित्तादिकके उद्रेकसे उत्पन्न हुआ स्वप्न असत्यपनेसे यद्यपि प्रसिद्ध हैं, तो भी अर्थमात्रसे व्यभिचारी है ऐसा नहीं, क्योंकि कोई भी अर्थ सत्ताके साथ व्यभिचारी नहीं है । परंतु विशेषार्थ के साथ व्यभिचारी होनेसे वह मिथ्या माना जाता है । इसलिये जगतमें अर्थ और उसको विषय करनेवाले ज्ञान ये दोनों पदार्थ सत्ता के साथ अव्यभिचारी होनेसे जगच्छून्य है ऐसा कहना योग्य नहीं ॥ २९ ॥
( चार्वाक आत्मा पदार्थ नहीं मानते हैं, उनका पूर्व पक्ष । ) - जीव नहीं है ऐसा प्रतिपादन करनेवाले नास्तिक - चार्वाक ऐसा कहते हैं “ जीव नामक पदार्थ नहीं है । इसलिये ये जड बुद्धिवाले लोग परलोकप्राप्ति के लिये -स्वर्गसुख के लिये क्यों तपश्चरण करते हैं ? " ||३०| " जीव नहीं है और उसकी क्रिया नहीं है । जीव नामका पदार्थ केवल नामगोचर है । जैसे आकाशपुष्प केवल नामही है, उसका वाच्यभूत पदार्थ कोई नहीं है, वैसे तो ' जीव' यह शब्द सुना जाता है परंतु उसका वाच्य जीव पदार्थ नहीं है । जो ज्ञान अनुभवमें आता है वहभी भूतात्मक है । पृथ्वी, हवा, पानी, अग्निसे उत्पन्न हुआ है और उसके द्वारा यह शरीररूपी यंत्र चलता है अर्थात् शरीरके द्वारा चलने बोलने आदिकी क्रिया ज्ञान कराता है, वह भूतात्मक होनेसे ही है ॥ ३१ ॥
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जो लोगों के मनको अनुरंजित करनेवाला कोई पदार्थ दिखता है वहभी भूतोपादानही है । अर्थात् अज्ञानसे लोगोंकी उसमें यह जीव है, ऐसी भ्रान्ति हुई है और वे उसे जीव कह रहे है | जैसे मट्टी के पिण्डसे घट उत्पन्न होता है, अर्थात् मट्टीका पिण्डही घटाकार होता है वैसे भूतोंसे उत्पन्न हुआ यह जनरंजक पदार्थ स्वयं भूतात्मकही है । कोई भूतोंसे भिन्न पदार्थ नहीं ॥ ३२ ॥
कोई जीव माननेवाले जैनादिक ऐसा कहते हैं, कि 'पृथ्वी, हवा, पानी आदि भूत अचेतन होने से चेतनरूप जीवकी उत्पत्तिके लिये उपादान नहीं होते हैं " यह जीववादियों का विधान मिथ्या असत्य है । क्योंकि गोमयादि पदार्थोंसे बिच्छु आदिक जीव उत्पन्न होते हुए
दिखते
१. आ. मानगोचरः S. S. 10.
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२. तमज्ञाना
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