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सिरीवालचरिउ
[ १. २७. १३घत्ता-जाएप्पिणु बव्वर समर-धुरंधर धवलु सेठ्ठि रणि अब्भडिउ ।
अण्णत्तहिं संगर कय-रण-डंवरु जाइवि सत्तु उवरि पडिउ ॥२७॥
२८
रणे 'संगामु करता दिठिहि चोर-उलइँ जित्तई सह सेठिहिं । रहसारूढउ पुठिहि लग्गउ वाहुडि चोरहँ धरिउ अभग्गउ । गहिउ सेठ्ठि पाइक्क पलाणा गूजर मरहठ्ठय विदाणा। जाइवि कहिउ तेहि सिरिवालहँ सेठि ण अग्गाहु बव्वर चोरहं । इय आयण्णिवि कोवाऊरिउ धाइय हाक्क दिंतु रण-सूरउ । वाम-करग्गे वारणु तोलिउ दाहिणेण असिवरु संचालिउ ।' जाइवि लक्खु-चोर हक्कारइ जिह गयवर वलि-हरिणा संकइ । सीह-णादु भड-कुवर कीयउ सवर-समूहु जंतु जणु भीयउ। पडिउ भगाणउ सव्वहँ चोरहँ लइउ ललाइ वहिउ जिम भोरह। कोडि-भडहँ बहु पउरिस धाविउ उपरा उपरि सयल बंधाविउ घत्ता-बवर समर-विथक्कई रणहँ चमक्का , वंधिवि सुहडह धरिय खणे ।
रे रे पाविठ्ठहो समरि णिठ्ठहो, महु पहु वंधिवि लेहु रणे ।।२८।।
सेट्ठिहि बंध कुमारू बिछोडइ. कम्म-पडि जिम केवलि तोडइ । वंधिउ तक्कर-गणु भइ कंपइ विडयणु तु रहसे जंपइ। जे रक्खिय अट्ठाई सो गंदउ पुत्त-कलत्त-सहिउ अहिणंदउ । सह कुसमाल धरेविणु आणिय ताह वत्थु गिण्हेवि अपमाणिय । वणिजारिय-सिरु सेस भरंतह अइहव-मंगल चारु करंतह । घरि घरि तोरण-वंदण-मालई कंचण-कलसइँ मालइ-मालइ । णव-णट्टई गेयई गिज्जंत. मंदल-पडह-संख वायंतई। धवलु सेठि सिरिवालु वि धण्णउ पुण्णवंतु गुण-गण-संपुण्णउ । बव्वर समरथेण सह आणिय बहु-भोयण-वत्थहिं सम्माणिय । करिवि तिलउ, सिरि दूवय घल्लिय पुणु सिरिवाल सव्व मोकल्लिय भणिउ तेहि तुहुँ सामि महारउ पेसणु देहि देव गरुयारउ। जणणि जणणु जे जणिय सुघग्णउ अम्हहँ जीव-दाणु पई दिण्णउ । किम हम उरिण होहिं तुव सामिय रिण-मुक्के करि मैगल-गामिय । घत्ता---गय तुरय सरोहण सत्त-परोहण मणि माणिक्क-पवालहिं । ___ अवर जि दीवंतर रयण णिरंतर ते ढोइय सिरिवालहिं ॥२९॥
१०
१४. ग अन्भिडिउ । १५. ग सत्थ । २८.१.ग रण । २. ग करंतह। ३. ग वाहुडि चोरहं धणुहरु सजिउ । ख वाहडि चोरह छडिउ अभग्ग:
४. ग विण्णाणा । ५. ग गाहउ । ६. ग संभालि उ । ७. ग जिम गय जूहु हरिहि णउ संक्कर। ८. ग
पउरिस । ९. ग उपरापरु सयल वि वंघारिय । २९.१क सह कुसवाल । २. क अपवाणिय। ३.ग करतई। ४. क बालई। ५. ग वहगण । ६. ग वव्वर
समर धरेसह आणिय।
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