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________________ १. २७. १२ ] हिन्दी अनुवाद घत्ता-जो जिनवरका भक्त और धर्ममें आसक्त है, जो युद्धमें कोटिभड वीरके नामसे प्रसिद्ध हुआ। जिसके हाथ ऐरावतकी सुंडकी तरह हैं, जिसे जयश्रीका लाभ है, वह दूसरोंके द्वारा क्या पकड़ा जा सकता हे ? उन्होंने उसे लाकर वहाँ दिखाया जहाँ सार्थवाह था और कहा कि हे प्रभु ! लक्षणोंसे युक्त • ( बत्तीस लक्षणोंवाला ) व्यक्ति ला दिया है, देख लीजिए। विटघरमें बधाई बजने लगी। राजाने उस वीरको आदरसे बहुत माना। उत्तम फूलोंसे उसके उत्तमांग ( सिर ) की पूजा की। उस वीरके शरीरका लाल चन्दनसे लेप किया। राजाने उसकी आराधना की। हे स्वामी ! ऐसा विचार कीजिए जिससे यह दुस्तर समुद्र हमलोग पार कर सकें। ये पाँच सौ जहाज समुद्रके तटपर जाम हो गये हैं। हे वीरोंके वीर, आप इन्हें चला दें। उस वीरने हँसकर उससे कहा-“हे सार्थवाह, समुद्रके किनारे चलिए।" तब वह वणिकवर शीघ्र ही वहाँ गया। नगाड़े, भेरियाँ और काहल बज उठे। जाकर उन्होंने जलदेवताकी पूजा की। पटवादियों ( पालवालों ) ने जहाज प्रेरित किये । जैसे ही वीरने पैरसे जहाज छुए वैसे ही सब तिरकर उस पार पहुँच गये । तब सेठने तुरन्त उससे कहा-“हे वीर, तुम मेरे धर्मपुत्र हो, तुम्हें जितना धन माँगना हो माँग लो।" उसने कहा-“हे सेठ, दस हजार दो।" तब उन्होंने कहा-"दस हजार वीरोंको तुम उसी प्रकार जीत लेते हो जिस प्रकार गजघटाको सिंह ।' तब कुमारने कहा-'हे सेठ सुनो, मैं तुमसे आज कहता हूँ, मुझे धन तब देना जब मैं तुम्हारा काम करूँ। धत्ता-रत्नोंके समान पाँच सौ जलयान समुद्र के बीचमें इस प्रकार चल रहे थे मानो आकाशतलमें चन्द्र, सूर्य और केतुके साथ मिलकर नक्षत्रगण चल रहे हों ॥२६।। लंगर उठाकर जहाजोंको चला दिया गया। पटवादियोंने हवा तेज की। बीचमें उत्तम बाँस रोप दिया गया। मरजिया उसपर चढ़कर बैठ गया। लोहेकी टोपी उसके सिरपर थी। नत-भेरुंड और गौरैयाका समूह भी उसके साथ चल रहा था। सुन्दर वाणिज्यके लिए वे प्रसन्न होकर चले। यानोंपर बैठे हुए सार्थवाह रत्नद्वीपके ऊपरसे यात्रा कर रहा था। लोग हिलोरों और तरंगोंसे क्षुब्ध थे। हवाके वेगसे जहाज चल रहे थे। तब लाख चोर उसके पीछे लग गये। वे एक-दूसरेसे युद्ध करने लगे। 'मारो ! मारो !!' की हाँक देकर, एक दूसरेको मारने लगे। धवलसेठ भी युद्धके लिए तैयार हो गया। वह दस हजार योद्धाओंसे लैस था। धनुषधारी अग्निबाण चलाने लगे। तीर, तोमर और सरोंका सन्धान किया जाने लगा। कवच पहने अंगरक्षकोंको बाँध दिया गया।...? उत्तम तलवारें, छुरे और फरसे चलाते हुए वे मुद्गर और कोतको घुमाते हुए दौड़े। मराठा लोग भी सब्बल, सेल और हाथमें फरकुन्त ( फरसे ) लेकर उठे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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