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________________ १५ ५ १० १५ ५ १० २८ सिरीवालचरिउ घत्ता - जो जिणपय-भत्तउ धम्मासत्तड कोडिवीरु अभउ जोवि रणे । सुर-कर-करि-वाहउ जयसिरि-लाहउ केम गहिज्जइ इयर जणे ||२५|| 2 ५. आणिवि दंसिउ जह सत्थ-वाहि बाई बज्जिय विडहरेहिं वर - कुसुमहिं पुज्जिउ उत्तमंगु आराहि कर पहु सो वियारु सय-पंच-परोहण रहियतीर विहसेविणु जंपर वीरु ताहि ता चल्लिय वणिवर तहिँ तुरंत जाइवि पुज्जिय जल-देवयाइँ पय परसइ पोहण वीरु जाम ता सेट्ठि पपइ तह तुरंतु महि जीव जो फुरइ तोहि दह - सहस वीरहू जिणहि तेम सुणि सेट्ठि पर्यपमि तुज्झु अज्जु घत्ता-पंचसयइँ जल- जाणइँ रयण-समाणइँ सायर - मज्झ सरंति कि । free मिलियइँ उडुयण चलिय हूँ ससि - रवि - केउ सहति जिह ||२६|| विसारिय णु मझ वंसु रोपियउ उकिट्ठउ लोहढोपरी मत्थइँ अच्छ गह-गहार चालहि वाणिज्जई चलिउ सत्थसहु जाणारूढउ मरुवसेण चालंति परोहण एक्कमक्क जुझंति परोप्परु धवलु सेट्ठि संगरि सण्णद्धउ धाणुक्किय चालिय अगिवाणहूँ बंधिय अंगरक्ख सण्णाह हुँ असिवर छुरिय- फरिय चालतह पुणु मरहट्ठ जाण उट्ठतहँ Jain Education International १२ [ १.२५.१४ २६ 3 पहु आणि लक्खणवंतु चाहि । मणिय वीरु पहु आयरेहिं । हरिचंद - चच्चि वीर अंगु । जिम दुत्तरु तरहि' समुद्द-पारु । चालावहि ते वीराहि-वीर । चलु सायर-कूल सत्थवाहि । पडुप डह - भेरि काहल रसंत । पडवाई - पोहण - वावसाइँ । 'सयलवि तरेविणिग्गमहि ताम । तुहुँ वीरु महारउ धम्म-पुत्तु । दह- सहस-तण दइ सेट्ठि मोहि । तें कहिउ सीहु गय घडह जेम । महु जीव' दिज्जहि किय" कज्जु । २७ वाउ सपडवाई संचारिया | तहि चडेवि मरजिया बइठउ । णत-भेरुंड चड-उलई गच्छइ । -दी उपर मणोज्जई । जणुं कल्लोलत्तरंगह खद्धउ । लक्खु चोरु तहि धाविउ गोहण । हक्क दिति मारतिय मरु-मरु | दह सहसहिँ पाइ कहिँ सद्धउ । तीरी - तोमर-सर- संधाणहँ" । "ट्टाहर सीस देवि सुद्दाहहँ । धाइय मुग्गर- कोंत-गुणं तहँ । सव्वल-सेल ह्त्थ-फरकुंत हूँ । 13 २६. १. ग वद्धावा । २. ग विडहरेहि । ३. ग आयरेहिं । ४. ग चंदण । ५. ग कहि । ६. ग तहिं ७. ग काल दिन । ८. ग सयल वि महि छुट्टिवि चलिय ताम । ९. ग जिम्बलु । १०. ग कियइ । २७. १. ग कड्ढेवि । २. ग संचारिय। ३. ग ऐसारिय । ४. ग लोहटोपरी मत्थे अच्छई । ५. ग चिडउ गल । ६. ग जल कल्लोल तरंगह छूटउ | ७. ग मोहण । ८. ग मारंतिय । ९. ग अगिवाणिय । १०. ग संचाणिय । ११. ग टाटर सीसि देवि उच्छातहं । १३. ग गुणंत । १२. ग च चालंतई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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