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सिरिवालचरिउ
[१. १६.६पहिरिवि चल्लिय कर-कंकणाई सुंदरि लेविणु करि कंकणाई। वायाहर-सिरि-छण-चंदणाई लेविणु चल्लिय कर चंदणाई। सई सुंदरि दिंती' सरस कुसुम जिणमुणि-जोग्गई लइ चलिय कुसुम । सुह-कम्महँ कारणु जाणि वेय गिहिवि चल्लिय सरसा णिवेय । णिय-णाह-सणेहारत्तियाई
लेविणु चल्लिय आरत्तियाई। चंगी पय-वाल-णरिद धुवा गिण्हेविणु गमइ दहंग-धुवा । जहिं दिणे णिरु उत्तम-फलाई लेविणु चल्लिय उत्तम-फलाई । भालयलि णिवेसिउ करंजलीय करि तोवि पसूण करंजलीय । घत्ता-जिणहरि जाएविणु जिण पुज्जेविणु पुणु पुजिउ आयमु पवरु ।
पुणु जाइवि दरसइ मुणि-पय परसइ साहु समाहिदत्तु सुगुरु ॥१६॥
गुरुभत्ति दऍविणु भाव-सुद्धि परमेसरु दिण्णी भाव बुद्धि । पुणु थुवइ सहास-दियंवराई पहु तुम्ह पवित्ति दियंवराई। बसि किय करण-विसउ वय-वसेण तुहं वसण बसि किय सवसेण । रइ पीइ पियंविणि हियय-सल्ल 'तुम्हहिं पियाणि रतिभेय सल्ल । जय-जय-जय तुहुँ तव-सिरीबाल दइ णा भिक्खपई सिरीवाल । 'जिम तिणइं निरंदइ सीर-वाहितिम दइ सिद्धचक्कु हय कुट्टवाहि । भवि पभवइ पुत्ति सम्मत्त लेहि अणवयई गुणव्वय तिणि एहि । पुणु सिक्खा-वय गेण्हहि चयारि पभणेइ मुणिसरु पावहारि । सुह सिद्ध-चक्कु सब्भाव लेहि हाहई गंदीसरु करेहि। वसु-दिण आरंभहि सिद्ध-चक्कु वसुदिण पुत्ति जिणहरे थक्कु । वसु-दल आराहहि सिद्ध-जंतु । असिया-उसाइ तहि परम मंतु । तिवल उ सकूडु तुहि पासि फेरि "छोडतउ को ओंकार केरि चउ-कोपहँ लिहहि तिसूल अट्ठ परमेसर-पंच-मज्झहं अट्ठ । पुणु मंगल गोत्तम सरण चारि जिण-धम्म-पुज्ज किज्जइ वियारि । पुणु दल-दल अवलेह हि समग्ग अ क च ट त प य स लिहि अट्ट वग्ग । दल-अंतरि दंसण-णाणु-चारु । चारित्त-चारु तउ लिहहि सारु । पुणु चक्किणि जाला-मालिणीय ___ अंवा परमेसरि पोमणीय । पुणु लिहियहि तह दह दिसावाल गोमुह जक्खेसर तहि सभाल। पुणु बाहिरमंडल माणिभद्द । पुणु दह-भुव-माणिउ वितरिंदुः । वसुदिण पालहि चउ बंभयारि 'एइंदिय-पसारु बसि करि कुमारि । करि एकचित्त वसु दिणइँ जाउ णिञ्चितु होवि दिदु' करहि भाउ ।
१. ग. दितिय सरस कुसुम । २. क. थुवा । १७. १. ख ग दइविवि । २. ग पह पुरु पलित्ति दियंवसई। ३. ग तुम्ह अवसण वणिकिय वयवसेण ।
४. ग तुम्हहं वियहिय तिय-भेय सल्ल । ५. ग स तुव सिरीपाल । ६. ग पालइ जिम तिणहं किकंदइ सीर-बाहि । ७. क छोडंतह। ८. ग मंगल लोगोत्तम सरण चारि । ९. ग णामिउ । १०. ग इंदिय पसारु मा करि कुमारि । ख रय । ११. ग दिढु ।
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