SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० १० १० सिरिवालचरिउ जणु व पाइपखालि देइ जणपंच बसि रोव हि विवाहु मा-बप्पु तार्मो परिणउ करे ate सुहागु चारहडि पुत्त सुहिताय जिणागम लक्खि एम भई तिगुत्ति मुणीसरु यि - कम्मे जु लिलाsह लिहियउ यहँ हँ मा करि वियप सुपि कविउ णिवइ घत्ता-ता णरवइ कुद्धउ, भणइ विरुद्ध, जाहु पुत्ति यिगेहहो । सागयवर-गामिणि, जण-मण-रामिणि, गय सरंति जिणदेवहो ॥९॥ परिवार - कुटुंबहु मंतु लेइ । देह बप्प इम सो जिणाहु । यि कम्मुताहँ अग्गइँ सरेइ । दूहव सूहव को करइ कंत । कम्मु सुहासह सव्त्रहँ अक्खिर । कम्मे रंकु विकम् ईसरु । सोको मेटइ जो विहि-विहियउ । होइज्ज लिहिउ कम्म बप्प | देखि कम्मु इहि तणउ मइ । १० ता पहुणिय-मणि रोसु वत ह्य-गय-वाहण-सिविया - जानहिं ' रोय-सोय- बहु- दुक्खें पत्तउ वेसर - रूढऊ वियलिअ-गत्तउ मुणि निंदियर पुव्वगुण-भीडिउ ढलहि चँवर बहु-घंटा - सद्दहि गलिय- पास-कर-चरणंगुलियइँ " ते पहिं इम्ह सामिउँ ५ इ कोढि किर अइ णिकिट्टर बहु-आडंबरेण सहुँ चल्लइ मंडलवइ परमंडलि संचइ -सह कि भंडारी बहिरदाहु तंमोलु समप्पइ वाहियालि लहु चलिउ तुरंतउ । आयवत्त- सिग्गरि-अपमाणहि । दिसमुह आवंतउ । सीसोवरि पलास-दल-छत्तउ । रातहि पावें पीडिउ । कय- कोलाहलु सिंगाणद्दहि | कोढिय ताह निरंतर मिलिय हूँ । अज्जु अवंती आउ गुसामि । वि हु तो फिट्ट । वाहि पेक्खि यि परियणु घल्लइ । घत्ता–चालइ णिवसुत्तह्", दुहियण-जत्तह, देस विएस घडई । कंथा- गूडर-घर अरु कंवलवर मेलइ णिव पइ ताडई 3 ||१०|| तो वि ११ [ १.९.३ रत्त-पित्त-रण-पाउँण खंचइ । जल दोणीय सयल पणिहारी । कंठधारी सरीरइं चप्पई । Jain Education International २. ख पक्खालि । ३. ख ग कुटुंबही । ४. ख ताइ । ५ ख ग लक्खिउ । क भासिउ । ६. क भणेवि । ७. ग देक्खिव्वउ कम्मु वि तणउ मइ । १०. १. ख ग जाहिं । २. ख ग सिग्गरि अपमाणहि । ३ ख ग. मुणिणिदियई । ४ ख ग उवरहिं तहिं । ६. ग यहु । ७. क सायउ । ८ क गुसामउ । ९. ग फिट्टइ । १०. ग भज्जइ लोउ ५. ख गुलिय वि महियलि हल्लइ । ११. ग णिय उत्तह । १२. ग धाडवइ । १३. ग ताडवइ । ११. १. ग मेहदहु सह किय भंडारिय । जल दोणिया सयल पणिहारिय || बहिर दाहु तं वोलु समप्पाहि । उक्कणतिय पावसि जवालिय । गुम्म वाहि घर सह कुटवालिय ॥ सूरवण्ण कंठधार सरीरहं चप्पाहि ।। ते सूर सलक्खण । गलिय साहु ते मंति वियक्खण ॥ कछ राहु वे यंचिय दलवइ । वर टियाल सह रक्खहिं णरवइ || पाडिहेर जेणा की भासहिं । उवरोहिय जे कालउ भासहिं ॥ पित्तसुक्कु नरहु वइ गच्छहि । रोम विहीण अंगरह अच्छहि ।। २. खदाहु | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy