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________________ १.९.२ ] हिन्दी अनुवाद तर्कशास्त्र और लक्षणशास्त्र समझ लिया और अमरकोष तथा अलंकार शोभा भी । उसने निस्सीम आगम और ज्योतिष ग्रन्थ भी समझ लिये । मुख्य बहत्तर कलाएँ भी उसने जान लीं । उसी प्रकार चौरासी खण्ड विज्ञान भी । फिर उसने गाथा, दोहा और छप्पयका स्वरूप जान लिया । उसने चौरासी बन्धोंका स्वरूप जान लिया तथा छत्तीस राग और सत्तर स्वरोंको भी । पाँच शब्दों और चौसठ कलाओंको भी जान लिया। फिर गीत, नृत्य और प्राकृत काव्यको भी जान लिया । उसने सब शास्त्र और पुराण जान लिये । अन्तमें छह भाषा और षड्दर्शन भी जान लिये। छियानबे सम्प्रदायोंको भी उसने जान लिया । उसने सामुद्रिक शास्त्र के लक्षणोंको भी शीघ्र समझ लिया । उसने १४ विद्याओंको पढ़-गुन लिया । औषधियों और भावी घटनाओंके समूहका भी ज्ञान हो गया । छियानबे व्याधियाँ वह उँगलियोंपर गिना सकती थी। बहुत से देशोंकी मुख्य भाषाएँ भी उसने सीख ली । उसने अठारह लिपियाँ भी जान लीं । नौ रसों और चार वर्गोंको उसने जान लिया । जिन शासन अनुसार उसने चारित्र और निर्वेद ले लिया । दुस्सह रति और कामार्थमें उसे कौन जीत सकता है ? उसने क्षपणक मुनिके पास जीवोंके अट्ठानबे समासों का अध्ययन किया । समाप्ति के पास उसने इन समस्त शास्त्रोंको अच्छी तरह जान लिया । छोटी कन्या मयनासुन्दरी अत्यन्त विनीत थी । वह इन समस्त शास्त्र-ग्रन्थोंसे महान् थी । घत्ता - वह कुमारी शीघ्र ही वहाँ गयी जहाँ पिता प्रजापाल राजसभामें बैठे थे । जनमनका हरण करनेवाली बहुगुणोंसे श्रेष्ठ उसने वहाँ कामभाव उत्पन्न कर दिया || ७ || ८ 1 जिन भगवान् के गन्धोदकको अपने सिरपर लेकर राजा प्रजापालको प्रणाम कर उसे आशीर्वाद दिया । राजाने सिरपर उस गन्धोदकको ले लिया, जो निर्मलको और भी निर्मल कर देनेवाला था । वह पुण्यसे पवित्र और पापका नाशक तथा आठ कर्मप्रकृतियोंका नाश करनेवाला था। कुमारीका रूप देखकर राजा अपना मुँह नीचा करके रह गया । राजा सोचता है कि कन्या सुलक्षणा है, विचक्षण यह किसे दी जाय ? यह सोचकर उसने कन्याको अपने पास बुलाया और कहा - "हे पुत्रि, जो मनमें अच्छा लगे वह वर माँग लो। हे पुत्र, जिस प्रकार तुम्हारी जेठी बहने चाहा था, वैसा सुरसुन्दरीने मनोवांछित वर प्राप्त कर लिया ।" वह कुमारी कुछ नहीं बोली, चुप रह गयी । तब राजा बोला - " हे पुत्र, चुप क्यों हो ? हे देवी, तुम्हारा रूप धवलअम्बर के समान दिखाई देता है । हे पुत्र, जो वर स्वयं ठीक लगे उससे विवाह कर लो ।" यह सुनकर वह चौंक गयी । धिक्कार कर वह मुँह नीचा करके रह गयी । घत्ता — उसका मन काँप उठा । वह सोचने लगी कि पिता व्यर्थ की बात कर रहे हैं, इसलिए जो कुलोक्त और ठीक है, वही उत्तर मैं आज दूँगी ॥८॥ ९ ९ तब कुमारी बोली - " हे तात ! सुनिए । जो कन्या अपने माँ-बाप से उत्पन्न होती है, उस कुलपुत्रीके लिए वही वर होता है कि जिसकी बाप मंगनी करता है । यदि वह दूसरे वरकी इच्छा २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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