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________________ १.७.२] हिन्दी अनुवाद वह अनोखी नगरी उपवनोंसे शोभित है, जिसमें पक्षियोंके बच्चे चहचहा रहे हैं। किन्नरोंके जोड़े लतागृहोंमें क्रीड़ा करते हैं। सालगृहों पर कोयले कूक रही हैं। कमलोंसे ढकी हुई जलकी खाइयाँ शोभित हैं, जो पंच-रंगे तीन परकोटोंसे घिरी हुई हैं । नगरके भीतर बाजार-मार्ग है, मानो रत्नों (सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूपी तीनों रत्नों ) से जड़ा हुआ मोक्षमार्ग ही हो । जिसमें स्फटिक-मणियोंकी दीवालोंमें हाथी अपना प्रतिबिम्ब देखकर संडसे छेद करते हैं। जहाँ तोरणोंसे सजे हुए नौ, सात और पांच भूमियों वाले घर शोभा पाते हैं, जहाँ लोग छत्तीस प्रकारके भोजन करते हैं; जहाँ जिनधर्ममें श्रद्धा रखनेवाले लोग निवास करते हैं। उसमें पयपाल ( प्रजापाल ) नामका राजा निवास करता है। वह प्रशस्त सप्तांग ( सात अंगोंवाला ) राज्यका परिपालन करता है। नरसुन्दरी नामकी उसकी मनोहर पत्नी है। वह वैसी ही सुन्दर है जिस प्रकार कामकी रति या रामकी सीता सुन्दर थी। उसकी पहली कन्या सुरसुन्दरी है और छोटी विनीत मदनासुन्दरी। घता-उनमें-से राजाने गुणवाली बड़ी कन्या पढ़नेके लिए द्विजवरको सौंप दी। इन्द्राणीको भी जीतनेवाली दूसरी कन्या मदनासुन्दरीको उसने मुनिवरके पास ले जानेका आदेश दिया ॥५॥ जेठी कन्या इस प्रकार पढ़ती कि उसके सामने कोई विद्वान् भी उत्तर नहीं दे पाता। पिताने उसकी रूप-ऋद्धि देखकर एक दिन उससे कहा-"जो वर तुम्हें ठीक लगे, वह मुझे बताओ, जिससे उसका विवाह तुमसे हो सके।" उसने कौशाम्बीके राजा सिंगारसिंहको पसन्द किया। राजाने उसे बुलाकर कन्या दे दी और उसे अश्व, गज तथा सोनेसे लाद दिया। परिजन और सब लोगों ने उसे बहुत चाहा। राजा सिंगारसिंह उस राजकुमारीके साथ भोग-विलास करने लगा। दिन-रात वह ब्राह्मण-धर्मका बोध प्राप्त करता तथा राजा बलि और वासुदेवके दीक्षाकर्मका भी। उसने गौ-सुत अश्वमेध नर-सुत ( यज्ञ ) और अजयज्ञके विधानको समझ लिया। जीवकी योनियोंके भेद भी उसने जान लिये। मांसके लिए गैडों और कुरुकुल(?)के भेदोंको उसने जान लिया। वह बताता-भादोंके आनेपर जलसे शुद्धि होती है। मांस खानेसे पितर सन्तुष्ट होते हैं। पशुओंके वधसे सुन्दर स्वर्ग मिलता है। गायकी योनि छूनेसे परमधर्म होता है। उसका मन दिनरात मिथ्याशास्त्रमें लगा रहता । ___घत्ता-अब हे भव्यजनो, मदना सुन्दरीके पढ़नेकी विधि सुनिए और मनमें धारण कीजिए। उसने मुनियोंसे जो कुछ समझा था, उससे उसे त्रिभुवन सूझने लगा तथा उसके लिए भूत और भविष्यत् काल स्पष्ट हो गया ॥६॥ छोटी कुमारी भी उसी प्रकार निष्णात हो गयी, जिस प्रकार प्रतिज्ञावाला अत्यन्त बुद्धिमान् व्यक्ति निष्णात हो जाता है ? उसने व्याकरण, छन्द और नाटक समझ लिये। निघण्टु, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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