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________________ ५ १० १० सिरिवालचरिउ पुणु हुकुमरि पिण वायरणु छंदु णाउ मुणिउ ५ उववणहिं' वि सोहइ सा विचित्त वल्लीहरेहिं किंणर रमंति जल - खाइय सोहहिं कमल- छण्ण पुणु यरह अंतरि हट्ट - मग्गु हँ सुद्ध-फलिह-मणि- भित्ति पेक्खि णव-सत्त-पंच भोमइं" घराई खडतीस पवणि भुंजंति भोय पयपालु णरेसरु वसइ तित्थु र-सुंदरि घरिणि मणोहरीय तो पण सुर-सुंदरीय कारंडहँ सावय चुमुचुमंत । सालहिय पुंसमारइँ लवंति । सालत्तय - मंडिय पंचवण्ण । रयणहि बिद्धुणं मोक्ख - मग्गु । afras asfबंबु देक्खि । सोहति णिबद्ध तोरणाइँ । जिण धम्मासत्तिय वसइ लोय सत्तंगु रज्जु पाइ पसत्थु । जिह कामहो रह राहुवहु सीय । मासुंदरि लहरिय विणीय । धत्ता - पाढहँ निमित्त गुण-संजुत्त पढण समप्पिय दियवरहो । जहिं जिय- पुरंदर मयणासुंदरि सो आएसिय मुणिवरहो ||५|| ६ सा जेठ कण्ण पुणु पढइ केम तह वरिद्धि पेक्खेव ताउ जो वरु रुच्चइ सो कहहि मुज्झ ते मग्गिड वरु णरवइ अभीहु सो आणिवि राएं दिष्ण कण्ण परिओसिउँ परियणु सयलु लोउ अणि परिबुझि विप्प-धम्मु गोव- अमेहर-सवाइँ जि - जोणिय सहियहँ मुणइ भेउ भद्दागम अक्खिय जलहँ सुद्धि पसु-कय-बहेण तहि सग्गु रम्मु अणु सत्थएण बुहयणुविण उत्तरु देइ जेम | सुरसुंदरि अग्गे भइ राउ | जिम तासु विवाहहुँ पुत्ति तुज्झु | कोसंबीपुरि सिंगारसीहु | हयगय आपूरिं हिरण्णवण्ण । सो कुँवर-सहिउ विलसंतु भोउ । बलि-वाएउ दिक्खियह कमु । अय-जण बिहाणइँ मुणिय ताइँ । गंडहँ कुरिहि कुल मंस- हेउ । तिष्पति पियर पुणु मंस-गिद्धि । गो-जोणिहि परसे परम-धम्मु | परमत्थ' - गंथ सुबुज्झिय तेण । घत्ता - -भवियहु णिसुणिज्जहु हियइँ मुणिजहु मयणा सुंदरि पढण - विहि । वाइँ बुज्झितिहुवणु सुज्झिउ भू-भविस्सु विष्फुरइ तहि ||६|| Jain Education International ७ [ १. ५. १ पणारु वि अइह-पवरु जिह | rrigate लक्ख सुणिउ । ५. १. गउववर्णाहि । २. सो लहिय पुंस महुरइ लवंति । ग साहिय पुंस महुरई लवंति । ३. ख ग पिक्खि । ४. गवेधु । ५. खग भूमइँ । ६ ख खड़तीस । ग छत्तीस । ७ ख ग भोउ । ८. ख ग लोउ । ६. १ ख अग्गइ । २. ग हय गय अऊरि हिरण्ण वण्ण । ३. ग परिउसिउ । ४. ख दिविखयह । ग दिउ । ५ ख घिय जोणिय सहियहं मुणई भेउ गंडयह कुरु सहियउ मुणइ भेउ गंडयहं कुरिहि कुलि मंस हेउ । ६. क परम सत्य-गंथु बुज्झिण तेण । ७ ख ग णिसुणिज्जहु । ७. १ ख लहुइ । ग लहुव । For Private & Personal Use Only कुलि मंस हेउ । ग जिय जोणिय सत्थ-गंथ बुज्झिउ तेण । खं परम www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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