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भाषा
तुहं पूच्छण पठई हउँ भत्तारु ( २।५ ) णं अंधे लद्धे बेवि णयण । णं बहिरे फूट्टे भए सवण ( २१६ ) पुण अग्गे लोटिय वार-वार ( २१६ ) आप आपणी बात कहीं ( २६)
टाप, लोह, टोपरि, मरजिया, लेसइ, करहू, कन्तकी सार, फुटे भये, जैसे शब्द और प्रयोग, अपभ्रंशकी परम्परागत भाषाके लिए नये हैं और उसमें समकालीन बोलियोंके विकासके संकेत सूत्र पर्याप्त मात्रामें हैं। संवाद :
कवि संवादोंकी योजनामें निपुण है। 'सिरिवाल चरिउ' में सभी प्रकारके संवाद मिलते हैं । कुछ संवाद मर्मको छू जाते हैं, तो कुछ संवाद तर्कपूर्ण हैं। कहीं कुटिलताको संवादोंमें सँजोया है तो कहीं लोकजीवनकी झाँकीको उतारा है। सभी प्रकारके रंगोंमें रँगे संवादोंकी योजना कविने कुशलतापूर्वक की है। सबसे अनोखी और विशेष बात यह है कि उनमें स्वाभाविकता है। पढ़नेपर ऐसे लगते हैं मानो सचमुच बातचीत हो रही है, वे आरोपित या थोपे हुए नहीं लगते हैं।
(१) मैनासुन्दरीसे उसके पिता द्वारा विवाह सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भाग्यवादी दर्शनको प्रकट करते हैं
राजा पयपाल मैनासुन्दरीसे पूछता है-"जो वर तुम्हें अच्छा लगे वह माँग लो, जैसा कि तुम्हारी जेठी बहनसे पूछा था।"
मैनासुन्दरी उत्तर देती है-"जो कन्या माँ-बापसे उत्पन्न होती है, उसके लिए माँ-बापका मार्ग ही उपयुक्त है। अन्यको चाहना वैसा ही है जैसा वेश्याके लिए लम्पट । पिता तो बस विवाह करता है, आगे उसका भाग्य । शुभ-अशुभ कर्म सभीको होते हैं।" ( १९)
(२) मैनासुन्दरीका विवाह कोढ़ीसे तय कर दिया जाता है। पयपाल उससे कहता है"बेटी, मेरा एक कहना करोगी, तुम कोढ़ीको दे दी गयी हो, क्या उसका वरण करोगी ?"
मैनासुन्दरी उत्तर देती है-“मैंने स्वेच्छासे उसका वरण कर लिया है, अब मेरे लिए दूसरा तुम्हारे समान है।" ( १।१२)
(३) श्रीपालको घरजॅवाई बनकर रहना अच्छा नहीं लगता है । उसका मन खिन्न रहता है । मैनासुन्दरी समझती है कि श्रीपाल किसी अन्यपर आसक्त है । वह श्रीपालसे पूछती है
"तुम दुबले होते जा रहे हो, तुम्हारी क्या चिन्ता है ? यदि कोई सुन्दरी तुम्हारे मनमें हो तो तुम उसे मान सकते हो।"
श्रीपाल उत्तर देता है-"तुम भोलीभाली हो, दूसरी स्त्री मुझे अच्छी नहीं लगती। पिता द्वारा दी गयी स्त्री ही मझे अच्छी लगती है।"
मैनासुन्दरी-"तुम्हारे मनमें क्या चिन्ता है ? अपनी गोपनीय बात मुझे क्यों नहीं बताते ?"
श्रीपाल-"सुनो! मुझे कोई नहीं जानता। मैं लज्जित हूँ कि मैं निर्लज्ज होकर तुम्हारे पिताकी सेवा करता हूँ। घर-घरमें यह गीत गाया जाता है।"
मैनासुन्दरी-"मेरे मनमें भी यही बात थी।" ( १।२० )
कितनी स्वाभाविकता है इन संवादोंमें ? लोक जीवनका एक दृश्य ही उपस्थित हो जाता है। एक उदाहरण, कितना सरल, स्वाभाविक और तर्क पूर्ण है । श्रीपाल बारह वर्षकी अवधिके लिए प्रवास पर जानेवाला है
(४) श्रीपाल मैनासुन्दरीसे कहता है- "मैं बारह बरसके लिए जाना चाहता हूँ ।' __ मैनासुन्दरी-"मैं मोहका निवारण कैसे करूँ? तुम्हारे बिना मुझे बारह दिनका भी सहारा नहीं है। मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगी।"
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