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________________ सिरिवालचरिउ कर्मणि प्रयोग ज्जहिं भविष्यत् काल एकवचन बहुवचन उ० पु० म० पु० अ० पु० सइ इसके अतिरिक्त भविष्यत्कालके लिए कृदन्तके रूप मिलते हैं जाएवउ, करेवउ, किव्वइ आलोच्य कृतिमें एक विशेष प्रयोग है-मिलइ, गउ, आइवि, इसकी दो स्थितियाँ सम्भव हैं(१) गउ आइवि मिलइ गया हुआ आकर मिलता है। (२) आइवि मिलइ गउ आकर मिलेगा। पहला प्रयोग अर्थहीन है, क्योंकि 'गया हआ आकर मिलता है', यह अस्वाभाविक वाक्य है। दूसरे प्रयोगमें सन्धि करनेपर रूप होगा-'मिलेगी' खड़ी बोलीके गा, गे, गी, के विकासका सम्बन्ध, जो विद्वान् संस्कृतके सामान्य भूत, गा, गअ, गा, से मानते हैं, वे अवश्य इससे प्रसन्न होंगे। परन्तु प्रश्न यह है कि भूतकालके कृदन्तसे भविष्यका बोध कैसे सम्भव हुआ ? दूसरे १६वीं सदीके प्रारम्भमें खड़ी बोलीमें गा, गे, गी, रूप आ चुके थे। हो सकता है कविने हिन्दीके 'मिलेगा' का अपभ्रंशीकरण 'मिलेगी' कर दिया हो । यह सम्भावना इसलिए भी सही है, क्योंकि कविने एक स्थलपर 'करह कन्त की सार' में 'की' का प्रयोग किया है, जो खड़ी बोलीके सम्बन्धका परसर्ग है। विधि और आज्ञामें p पौराणिक हि कराव हि चला० हि । सामान्यभूत कृदन्त उ, अ पण, णि इत्यादि । पूर्वकालिक क्रिया इ, इवि, अव, अपि, ओपिण्णु, एवि, एवि, एविणु, हाप्पिणु । क्रियार्थक क्रिया अण भू. क्रियाके रूप हु, हुवइ, होइ, होउ, होहि, होति, होतइ, होख, होउ, होति, होंतु, होतउ, होसइ, होसहि, होसमि, होएविणु । अस, अस्थि, अत्थिय, अच्छइ, अच्छहि, अछि उ, अछइ "सिरिपाल चरिउ' की भाषाका सबसे महत्त्वपर्ण पक्ष है। उसमें बोलियोंके प्रयोग ते भले भए ( १।१८) बारह बरस न वावहि ( १।२) तुट्टइ आवण (२०३२) भउ विवाहु (११३६ ) णत्थि नोय, णउहुइ, णवि होसई ( ११३७) तुवालाखु दायु दइहंउ पसाउ ( ११४०) जिणणामे फोडी खणि बिलाइ (११४१) काहे दिण्ण बप्प परएसहं ( ११४२) धोबी चमार घर करहिं भोज्जु ( २।४ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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