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________________ सामाजिक-चित्रण ३७ इसी प्रकार उज्जैनीके वर्णनमें भी सम्पन्नताका उल्लेख किया गया है"उज्जैनी नामकी नगरी वह अत्यन्त प्रसिद्ध है, जो सोना ओर करोड़ों रत्नोंसे जड़ी हुई है।” (११४) लाख चोरोंको जीतने के बाद श्रीपालने जो वस्तुएँ एकत्रित की उनका विवरण इस प्रकार है "शोभा सहित गज, अश्व, सात प्ररोहण, मणि-माणिक्य, मँगे एवं और भी द्वीपान्तरोंके रत्नोंको श्रीपालने इकट्ठा कर लिया।" ( १।२९) बब्बरने श्रीपालको भेंटमें जो वस्तुएँ दीं"रत्नोंसे जड़ा छत्र, और भी उसने दिया हिरण्य, सोना, धन-धान्य आदि ।” (१।३०) धवलसेठ और श्रीपालके जहाजोंमें मणिमाणिक्य और अन्य बहुमूल्य सामग्री भरी हुई थी-"मोती, श्रीखण्ड, प्रवाल, कपर, लवंग, कंकोल इत्यादि बहुत-से रत्नोंसे भरे हए जहाजोंको लेकर वे लोग चले।" ( ११३) रत्नद्वीपमें पद्मराग मणि अपरिमित मात्रामें बतलाये हैं। (१।३०) हंसद्वीपमें तो अनेक प्रकारके रत्नों और मणियोंकी खदानोंका उल्लेख किया गया है। (११३० ) इसके अतिरिक्त-"लाट, पाट, जिवादि, कस्तुरी, कुंकुम, हरिचन्दन और कपुर जिसमें थे।" ( १३० ) हंसद्वीपके बाजार मणियों और रत्नोंसे भरे हुए थे"मणि-रयणइँ जहिं आवणि भीतर।" ( ११३३ ) सहस्रकूटके जिनमन्दिर में भी सुवर्ण, मूंगा, पन्ना, मणि आदि प्रचुर मात्रामें जड़े हुए थे। "सुवर्णसे निर्मित वह लाल मणि और पन्नोंसे जड़ा हुआ था। शुद्ध स्फटिक मणियों और मूगोंसे सजा हुआ। राजपुत्रोंने उसपर बड़े-बड़े मणि लगा रखे थे। वह सूर्यकान्त और चन्द्रकान्त मणियोंसे शोभित था।........उसके चारों ओर इन्द्रनील मणि लगे हए थे। उसकी श्रेष्ठ पंक्तियाँ गवय, गवाक्ष आदि अनेकों स्वच्छ रत्नोंसे और नीचेकी भूमिमें जड़ी हुई थी।” ( ११३४ ) श्रीपाल बारह वर्षकी अवधिके पश्चात् लौटकर आता है तथा प्रजापालसे मिलता है तब वहाँके लोग खुशी मनाते हैं। उस समयका वर्णन देखिए “घर-घर आनन्द-बधाई हुई। प्रवालोंसे जड़ित मणियों और मोतियोंकी मालाओंसे घर-घर तोरण सजा दिये गये ।" ( २।१७ ) व्यापार जलमार्गसे व्यापार करनेका वर्णन 'सिरिवालचरिउ'में मिलता है। धवलसेठके साथ अन्य व्यापारी भी थे। नगर, गाँव व देशके अतिरिक्त अन्य देशोंसे भी व्यापार करनेका वर्णन मिलता है। व्यापारी लोग काफी सम्पन्न बताये है। धवलसेठका सम्मान राजा धनपाल करता है (११)। युद्ध में प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्र मुद्गर, भाले, सब्बल, सैल, फरसे ( १।२७ ), तलवार ( १।२८), तूणीर-धनुष ( २।१२), कोतल, कुन्त और कटारें (२।२४ ) शस्त्रोंका वर्णन आलोच्य कृतिमें मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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