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________________ फसल व वनस्पति दाख, मिर्च, ईख, तुम्बी', कपास आदिका वर्णन कविने किया है । अवन्तीके वर्णनमें दाख, मिर्च और ईखका वर्णन भी मिलता है । "पहं दक्ख मिरिच चक्खति कोइ ॥ इक्खा-रसु पिज्जइ साउ लेवि ।” ( ११३ ) कनककेतुके पुत्रोंके चित्तकी मोती और कपाससे उपमा दी है । " मोतिउ कपासु णं साइचित्त || ” ( १1३२ ) वनस्पति में सालवृक्ष, बाँसका उल्लेख है । एक स्थानपर वटवृक्षका वर्णन भी है" सालहिय पुंसमारइँ लवंति || ” ( ११५ ) रत्नमंजूषाके विवाह में हरे बाँसका मण्डप बनाया गया था । "हरिय वांस तहिँ मंडउ ट्ठवियउ || ” ( १।३६ ) 1 श्रीपाल समुद्र तैरकर आता है, उसके बाद वह वटवृक्ष के नीचे बैठता है । ( १।४७ ) कस्तूरी और हरिचन्दनका उल्लेख हंसद्वीपके वर्णन में मिलता है । ( १।३० ) भौगोलिक वर्णन खदानें 'सिरिवाल चरिउ' में मणियोंकी खदानोंका वर्णन सबसे अधिक उल्लेखनीय है । हंसद्वीपमें इस प्रकारकी अट्ठारह खदानोंका विवरण दिया गया है नगर व ग्राम â 'सिरिवालचरिउ' में अनेक नगरों, देशों व ग्रामोंका वर्णन किया गया है । ग्रामोंके नाम नहीं दिये गये हैं, परन्तु उनकी विशेषताएँ बतलायी हैं । नगरों और देशोंका नामसहित विवरण दिया गया है जिनमें मुख्य रूपसे अवन्ती, मालव, उज्जैनी, कौशाम्बीपुर, अंगदेश, चम्पापुरी, वत्सनगर, रत्नद्वीप, हंसद्वीप, लवण नगर, कुण्डलपुर, कंचनपुर, कोंकण द्वीप, थाना, ' पंच पाण्ड्य, मल्लिवाड, तैलंग, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, गुजरात, अन्तर्वेद, कच्छदेश, भड़ौंच, पाटन, कश्मीर और कोट" के नाम विशेष रूप से उल्लेखन हैं | कौशाम्बी ( २1१ ) और जम्बूद्वीप ( २1१२ ) का नाम भी मिलता है । १२ 43 गाँव नगरोंके समान हैं और नगर बहुत सुन्दर हैं । नगरोंको सुन्दरता निराली है। समुद्रके किनारे या नदी के किनारे भी नगर बसे हैं, जो स्थल व जल मार्गों से जुड़े हैं। नगर में तालाब भी हैं । लोग गाय व भैंस पालते हैं । नदीके पानी और तालाब के पानी में गन्दगी नहीं है । स्त्रियाँ सुन्दर और सुकुमार हैं । ( १।३ ) नगरो में विद्वान् पुरुष हैं जिनको अनेक भाषाओंका ज्ञान है । नगरोंमें वैश्य रहते हैं जो व्यापारव्यवसाय करते हैं । विद्वान् लोग बहुत-सी भाषाएँ सीखते हैं, सम्भवतः व्यापारियोंके लिए दूसरे द्वीपों में व्यवसाय करने के लिए यह जरूरी था । 'जहि र विउस पढेहिं बहु - वाणिय ।' ( ११४ ) १० Jain Education International ८. (१।४६), १. ( १/४६ ), २. (१३), ३. (१/४), ४. (१/६ ), ५. (१२५), ६. (१।२५), ७. (११२७), ९. ( २८ ), १०. (२1१०), ११. (२/११), १२. (२/१३), १३. (२/१३), १४. (२/१३), १५. ( २० ) 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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