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________________ ३६ ४. दान देनेकी प्रथा दान देनेकी प्रथाका कहती है—''चार प्रकारके सिरिवालचरिउ वर्णन भो है । मैनासुन्दरी श्रीपालको विदाके समय ( १२ वर्षके लिए ) उसे संघको दान देना मत भूलना ।" ( १।२२ ) ५. प्याऊ निर्माण लोगों को पानी पीनेके लिए प्याऊका वर्णन भी मिलता है । अवन्तीके वर्णनमें लिखा है- "लोग ईखका रस लेकर पीते हैं और प्याऊसे पानी पीते हैं ।" ( ११३ ) "इक्खा - रसु पिज्जइ साउ लेवि । पाणिउ पीयन्ति पवालिएवि । ( १ ३ ) ६. पान-सुपारीकी प्रथा किसी अतिथि या सम्मानित व्यक्तिको पान खिलानेकी प्रथाका भी उल्लेख मिलता | राजा धनपाल धवलसेठको भी पान और सुपारी देता है । ( २1१ ) बारह वर्ष में श्रीपाल लौटकर आता है । मैनासुन्दरी अपने पिताके दुर्व्यवहारका वृत्तान्त श्रीपालको सुनाती है । वह अपने पिताके पास दूत भेजती है । प्रजापाल उस दूतको पान देता है और फिर बातचीत आरम्भ करता है । ( २।१६ ) ७. दण्ड अपनी जाति छिपाना घोर अपराध बतलाया गया है । धनपालको जब यह मालूम होता है कि श्रीपाल डोम है ( डोमोंके षड्यन्त्रसे ) तो वह श्रीपालको मृत्युदण्ड देनेकी आज्ञा देता है । ( २१४ ) इसी प्रकार जब धवलसेठके षड्यन्त्रका पता लगता है तो उसे भी मृत्युदण्ड देनेके लिए तैयार हो जाता है । ( २१७ ) ८. षड्यन्त्र Jain Education International धवलसेठ रत्नमंजूषाको पानेके लिए अपने मन्त्री से मदद के लिए कहता है । धवलसेट एक योजना बनाता है, जिसके अनुसार मन्त्री यह कहेगा कि जलमें मछली है, जिसे देखनेके लिए श्रीपाल बाँसपर चढ़ेगा । उस समय मन्त्री रस्सी काटकर उसे जलमें गिरा देगा । इस कामके बदले में धवलसेठ उसे एक लाख रुपया देनेका वचन देता है । ( १|४० ) इसी प्रकार श्रीपालको डोम बतानेके लिए धवलसेठ एक षड्यन्त्र रचता है और डोमोंकी सहायता करनेके लिए एक लाख रुपये देनेका वचन देता है । ( २२ ) आर्थिक वर्णन 'सिरिवालचरिउ' में आर्थिक सम्पन्नताका विवरण मिलता है । सोने, मणियों आदिकी यत्र-तत्र बहुलता दिखती है । वैसे ऐसे प्रसंग अधिकतर राजाओंके सन्दर्भ में ही आये हैं, इसलिए साधारण जनताके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। राजा तो साधन-सम्पन्न होते ही हैं और उनके यहाँ मणि, हीरे, जवाहरात आदिका होना कोई आश्चर्यकी बात या सम्पन्नताके द्योतक नहीं हैं । कुछ शहरों व देशोंके विवरणमें ऐसे विवरण मिलते हैं जिससे आर्थिक सम्पन्नताका आभास होता है। उज्जैनीके वर्णन में 'स्फटिक मणियोंसे निर्मित' दीवालोंका उल्लेख किया गया है। इसके अलावा लोगोंके सुखी होनेका विवरण भी है - " लोग छत्तीस प्रकारके भोगोंको भोगते थे ।" ( १४५ ) मालव देशके वर्णनमें बनियों को श्री सम्पन्न बताया है- " जिसमें ( मालव देशमें ) श्री सम्पन्न बनिया निवास करते हैं ।" ( ११४ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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