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________________ सिरिवालचरिउ परन्तु रस्सी काटकर उसे समुद्रमें गिरा दिया जाता है। धवलसेठ दिखावा करने के लिए तुरन्त दौड़कर आता है। धवलसेठ अपने उद्देश्यकी पूर्तिके लिए दूतीको रत्नमंजूषाके पास भेजता है परन्तु रत्नमंजूषा दूतीको खूब फटकारती है । तब धवलसेठ रत्नमंजूषाके हाथ जोड़कर और पैर पकड़कर मनाता है । रत्नमंजूषा उसे खरी-खोटी सुनाती है। उसे सुअर, कुत्ता, गधा, कलमुखी, पापी कहती है । परन्तु उस निर्लज्जपर इसका कुछ भी असर नहीं होता। रत्नमंजूषा उसे अपना ससुर मानती है इसलिए ससुरका बहूके प्रति इस प्रकारका व्यवहार पाप है। अन्त में जलदेवता आकर रत्नमंजूषाकी रक्षा करते हैं। धवलसेठ दलवटण नगरमें आता है । राजाके दरबारमें वह श्रीपालको देखकर सन्न रह जाता है। वह डोमोंकी सहायतासे षड्यन्त्र रचता है। वह डोमोंसे कहता है कि तुम राज-दरबारमें नृत्य करके श्रीपालको अपना सम्बन्धी बताओ। इस कार्य के लिए वह डोमोंको एक लाख रुपया देनेके लिए वचन देता है। राजा श्रीपालको अपनी जाति छिपानेके लिए दण्ड देनेके लिए तैयार हो जाता है परन्तु रत्नमंजुषा द्वारा सही स्थितिका ज्ञान करानेपर, वह श्रीपालको छोड़कर, धवलसेठको पकड़ता है। वह धवलसेठके हाथ, कान, नाक छेद देता है। वह उसे मरवानेके लिए तैयार हो जाता है, परन्तु श्रीपाल उसे छुड़ा देता है। वस्तुतः ध्वलसेठके चरित्र-चित्रणमें कवि मानवी संवेदनासे दूर है, वह भी श्रीपालकी तरह सिद्ध चरित्र है। रत्नमंजूषा रत्नमंजूषा हंसद्वीपके राजा कनककेतुकी कन्या है। वह रूपवती और गुणवती है। कनककेतु जिनमन्दिर में जाकर गरु महाराजसे पछता है कि वह कन्या किसको दी जाये? मनि महाराज उसे बताते हैं कि जो सहस्रकट जिनमन्दिरके वज्र किवाड़ोंको खोल दे, उसीसे रत्नमंजुषाका विवाह कर देना। श्रीपाल उन किवाड़ोंको खोल देता है। इस प्रकार रत्नमंजूषाका विवाह श्रीपालसे हो जाता है । श्रीपाल उसे अपना पूरा परिचय देता है । रत्नमंजूषा अपने पतिसे सन्तुष्ट है । उसे अच्छा वर मिल गया। ___ वह अपने पतिके साथ जहाजमें जाती है । परन्तु दुर्भाग्यसे धवलसेठके षड्यन्त्रके कारण उसे शीघ्र ही पतिका वियोग सहना पड़ता है। वह धवलसेठके द्वारा सतायी जाती है। ऐसे क्षणमें वह अपने भाग्यको कोसती है और परदेशीके साथ विवाह करनेपर पिताको उलाहना देती है। वह कहती है कि पिताने परदेशीके साथ मेरा विवाह क्यों किया ? ऐसे समय वह अपने-आपको असहाय महसूस करती है। इसलिए वह अपने माँ-बाप, भाई-बहनको 'याद करती है। श्रीपालकी वीरताकी बातें याद कर विलाप करती है। वह इसे अपने कर्मोंका ही फल मानती है। उसे यह विश्वास है कि श्रीपालसे उसकी भेंट होगी, क्योंकि मुनिने कहा है कि १२ वर्ष बाद मैनासुन्दरीसे श्रीपालका मिलाप होगा। मनिके बचनोंमें उसे दढ़ विश्वास है। इसके अतिरिक्त उसका विवाह भी नैमित्तिकके कहनेके अनुसार हुआ है, इसलिए उसे विश्वास है कि श्रीपालसे उसका मिलाप होगा। धवलसेठ उसके पास दूती भेजता है। वह दूती और धवलसेठ दोनोंको फटकारती है। धवलसेठको वह अनेक खरी-खोटी बातें सुनाती है। वह पतिव्रता है और अन्य पुरुषको देखना भी पाप समझती है। धवलसेठको वह पितातुल्य और ससुर समझती है। अन्तमें हारकर फिर वह अपने भाग्य व पूर्वजन्मके कर्मोको इस आपत्तिके साथ जोड़ती है। वह इसे पूर्वजन्मके कर्मोका फल ही मानती है। ___ उसके रोनेपर जलदेवताका समूह आकर उसकी रक्षा करते हैं। धवलसेठके षड्यन्त्रसे श्रीपाल डोम सिद्ध कर दिया जाता है । गुणमाला श्रीपालसे उसकी जाति पूछती है। वह गुणमालाको जानकारी लेने के लिए रत्नमंजूषाके पास भेजता है। गुणमालासे रत्नमंजूषा पहले यह पूछती है कि यह श्रीपाल कौन है । जब उसे यह पूर्ण विश्वास हो जाता है कि यह श्रीपाल उसका पति ही है, तब वह गुणमालासे सारा रहस्य नहीं बताती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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