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________________ १. ४७.९] हिन्दी अनुवाद चर पुरुषोंने राजासे कहा कि हे देव, नैमित्तिकोंने जो बताया था वह आ गया है, वरश्रेष्ठ । समुद्र तटपर वह वटवृक्षकी छायामें बैठा है। छाया उसे छोड़कर नहीं जा रही है। वहाँ जहाँ बैठा था वह, अभी वहीं है। तब राजाकी बुद्धि हर्षसे भर उठी कि अवधीश्वरने जो कहा था, वह बात पूरी हुई। राजा स्वयं सामने आया। नगरीके भीतर उसने उत्साह करवाया। रास्ते में शोभनाओंने मंगल गीत गाये। भाटोंने यशकी प्रशस्तियोंका गान किया। इस प्रकार उत्साहपूर्वक नगरमें उसे प्रवेश दिया गया। राजाने श्रीपालको सन्तुष्ट कर दिया। शुभ वेला और लगनमें मूसलके समान भुजाओंवाली । गुणमाला कन्या श्रीपालको दे दी गयी। घत्ता-सुखोंसे परिपूर्ण अपने जन्मान्तरमें उसने जो सुखोंसे परिपूर्ण सिद्ध चक्र विधि सम्पन्न की थी, उसी ब्रतके प्रभावसे मनको अनुरक्त करनेवाली सुन्दरी गुणमाला उसने प्राप्त की ॥४७॥ सिद्ध कथामें महाराज श्रीपाल और मदनासुन्दरी देवीके चरितमें पण्डित श्री नरसेन द्वारा विरचित, इस लोक और परलोकमें शुभ फल देनेवाला, भयंकर दुःख और कोड़ __ व्याधि तथा जन्म-जन्मान्तरोंका नाश करनेवाला मदनासुन्दरी, रत्नमंजूषा और गुणमालाके विवाहवाला पहला परिच्छेद समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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