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सिरिवाल चरिउ
[ १. ४७.१
चरपुरिसहिँ रायहो संसिठ्ठा देव णिमित्तिएहिं जं दिउ । सो वरु आयउ णाह गरिठ्ठउ तरि जलणिहि वड-छाहि बइठउ । छायातणु छाडिवि ण गच्छइ जहिं णिविट्ठ तहिं अजवि अच्छइ । ता णरिंदु मइ रहसो सुम्माइउ अवहीसरहिँ कहिउ सो आयउ । ता णरवइ सइँ सम्मुहुँ आयउ णयरिमाहँ उच्छाहु करायउ। रच्छा सोहई मंगलु गिज्जइ भट्टहिँ विरदावलीय पढिज्जइ । इयउच्छाहें णयरि पवेसिउ सिरिवालु वि राएं संतोसिउ । सुह-वेलग्गहे गुणमाल-सुय सिरवालहो दिण्णी मुसलभुय । घत्ता-जा पुव्व-भवंतरि सुक्ख-णिरंतरि सिद्ध-चक्क-विहि जे विहिय ।
ते वयहँ पहावें मण-अणुराएँ गुणमाला सुंदरि लहिय ॥४७॥
इय सिद्ध कहाए महारायसिरिवाल-मयणासुंदरि-देविचरिए, पंडितणरसेण-देवविरइए इह-लोय-परलोय-सुहफल कराए रोर-दुह-घोर-कोढ-वाहि-भवाणुभवणासणाए मयणासुंदरि-रयणमंजूसा-गुणमाला-विवाह
लंभो णाम पढमो परिच्छेउ सम्मत्तो ॥१॥
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