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________________ ५ १० १५ 。N सन्धि २. १ पुणु अक्खमि भव्व' गंजणु भउ सिरिपाल जह आपसे दुट्ठ-पवंचु कहूं । पुणु जामायउ रारं वृत्त उ देव ण मग्गमि कहमि समासह करइ रज्जु सिरिवालु सइच्छइ तह कहा पट्ठत्तहि सच्चई सील-पइज्ज महासिरि "णिय-पइ मेल्लि अण्णु जउ मोहिय धवलु सेट्ठि तर करइ पयट्टणु पाविउ आइ दीव तहिं लग्गइ दि राउ धवलेण वेष्पिणु भराउ को इहु कोसुंमिउ राउ चवइ सिरिवाल समप्पइ 'भरिय तमोल - कपूर- सुपाडिय जइ पावि देखइ सिरिवालह पुणु थिर- दिट्ठि करे विणु झाइय कवणु एहु आयउ कहिँ होंतउ केवि कहिय राय - जमायउ धत्ता - तहि सेठि पराय इहु छइ सिरिवा किमंतु स कूड अयाण अक्खि तहँ तुम्हीँ करहु चचु तुम्ह कहु म सिरिवाल पुतु तं सुणिवि पहुत्त रायवार अवलोइय डोमहिं राय- सहा आरंभिउ णव - रस- देक्खणउ Jain Education International जं मग्गहि तं देमि णिरुत्तउ । दिन दस पंच अछमि तुव पासहँ । गुणमाला भामिणिहु सुच्छइ । मँजूस महासइ जेत्तहि । णं सास- देवी परमेसरि । तउ हुउँ देव-सत्थ-गुरु- दोहिय । कहा- संजोउ आउ दलवट्टणु । रायहो पासि चलिउ लग्गइ । मुत्ताहलइँ णवल्लइँ लेप्पिणु कहइ सेट्ठि हउँ धवलु सधम्मिर । थवई माडु वीड इह अप्पर सोवण पासि सेकिहुं झाडिय । तर जणु हयउ सी वजतालहुँ । तर सणिवाय-लहरि जणु आइय । पुच्छर सेट्ठि 'हियएँ पजलंतर । सिरिवालु वि सायरु तिरि आयउ । विडहरि आयउ वइसिवि मंतिहि अक्खियउ । महु खयकालु रायकुंवरि परिणिवि थि ||१|| २ कोकविय डोम - मातंग-पाण | रायंगणइ खेलहु पवंचु । तर लक्खु दामु दइहउँ णिरुत्तु । भीतर गय पुच्छिवि पाडिहार । जणु इठ गण-गंधव्व - सहा । उहास उडिच्छल-हय- पेक्खणउ | १. १. ख ग भव्व । २. ख ग उत्तउ । ३ ख ग सच्छइ । ४. क सच्च सील-पड़जा रुरूढा सिरि । ५. खग णिय पय । ६. ग में निम्नलिखित पंक्ति अधिक है। " एतहि तत्थ परोहण लग्गउ ।" ७. ग थइय as तमो वियई । ख धवइ वालु वीडउ इह अप्पई । ८. ग भरिय तमोल - कपूरसुखाडिय । सोवण उप सेट्ठि कहु झाडिय । ९. ख हियइ । २. १. ग णच्चु । २ ख ते सुणिवि पहुत्तउ रायाहि राय । ३. ग हंसावलि छिलहट पेक्खणउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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