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________________ सिरिवालचरिउ [१.४३.९जा पयपाल-धीय गुण-पुण्णिय वारहवरिस-अवहि पिय दिण्णिय । कहिं होसइ कुंदप्पह मायरि को लेसइ णयरी चंपाउरि । अंग-रक्ख ते को रक्खेसइ को तहिं अंगदेसि जाएसइ। को पिय सावय-वउ स्वएसई सिद्ध-चक्क-वउ कवण करेसह। इम विलवंति वि वारइ सहियणु अवसें दिण्ण जो संचिउ रिणु । अंतराय कम्मु इहु जोयहि संभरिवि वहिणि मा कंद हि रोवहि । घत्ता-कारुण्णु णिवारइ हियउ सहारहि पाणिय अंजुलि देहि तहो। सिरिवालु अतीत उ गयउ जु वीतउ रयणमँजूसा रुवहि कहो ।।४३।। लोयायरहँ' कुणहि पलोवणु करि भोयणु सइ पहाणु विलेवणु । खाणह-पाण-विलेवण मायई 'महाएवि सिरिवालहो आयई। अच्छइ एम महासइ जावहिं दूई सेठ्ठि पठाई तावहिं। भणइ दूइ सिरिवालु म जोवहि धवल सेट्ठि सामिउ अवलोयहि । णिसुणि मणिउ हे दूइ णिक्किठ्ठिय अम्हह ससुरु होइ पाविठ्यि । जुत्ताजुत्त ण जाणइ कामिउ सुण्ह बहिणि सेवइ णिण्णामिउ । बलिवंडइ किर आइ बुलावइ पाइ लागि कर जोडि मणावइ । रयण-मँजूस भणइ विहडप्फड ओसरु रे ओसरु तिय-लंपड । पापिय काल-मुखी कुल-भंडिय पइँ णिय-माइ-बहिणि किम छंडिय । हउँ जाणउँ ससुरउ वावुहरु अव तूरे कूकरु खरु सूवरु। अहो जल-देवय तुम्ह णिरिक्खहु इहि पापियहि पास मोहि रक्खहु । घत्ता-बहु-दुक्ख णिरंतर अण्ण-भवंतर कासु कीय भो णाह मई। परलाउ करंतहँ एम रुवंतहँ जल-देवि-गणु आउ सई ॥४४॥ ४५ माणिभदु सायरु हल्लोलिउ पोहणु धरि अहमुहु चम्बोडिउ । चक्केसरिय चक्कु जिम फेरिउ वणि आउलिय परंपरि बोलिउँ । हरिसंदण अंबाइय आइय कुक्कुड सप्प रहहँ पोमाइय । खेत्तपालु सुणहा चढ़ि धायउ धवल-सेठि-मुह लूहडु लायउ । धूमायारु कियउ तव रोहिणि अग्गि पजाली जाला-मालिणि । रयणमँजूस-सील-गुण-से विहिं वणिवर तासे सासण-देविहिं। वितरिद गरुडासणि आयउ । दह-मुह-णामिउ गहु सइ मायउ । आइवि धवलु सेठि तहिं साधिउ णिविडबंध पाछे करि वाँधिउ । उद्ध पयइं अह सिरु करि चालिउ पुणु अमेहु पापी-मुह घालि 3 । एवमाइ वहु-दुक्खु सहतउ रक्खहु रक्खहु एम भणंतउ । ७. ख ग पालेसइ। ८. ग दिण्ण उं । ख देवउं ४४. १. ख लोयाचारुहु । ग लोयाचारु वि । २. ख ग इय पवित्ति सिरिपालुहु आपई। ३. ग जुत्तु अजुत्तु । ४. ग सुण्ह । ५. ग पाविय । ६. ख पापी काला सुह । ग 'कालय मुह' । ७. ग कुक्करु । ८. ग तहिं । ४५. १. ग पोहणु धरि करिउ मुहं चमोलिउ। २. ग फेरिउ । ३. ग हरिदंसण । ४. ग खेत्तपालु सुणह है रह धायउ । ख खेत्तपालु सुणहा रह धायउ । ५. ग लुहलु । ६. ग पंज्जालिय । ७. ग सेट्रि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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