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सिरिवालचरिउ
[१.४२. ५जिणणामें दुरियई खयहु जति परिपुण्ण-मणोरह णिरु हवंति । जिणणामें छिज्जइ मोह-जालु उप्पज्जइ देवहँ सामि-सालु । जिणणामें णासइ सयल वाहि गल-गुम्म-गंड ण वि कोदु ताहि । जिणणामें णउ छलु छिद्दु कोइ डाइणि साइणि जोइणि ण होइ । जिणणामें णासइ रोरु घोरु घर-सत्थ-पंथ मूसइ ण चोरु । जिणणामें ठकु ठाकुरु ण दुठु थावर जंगमु णवि काल-कुछ। जिणणामें फोडी खणि विलाई इकतरउ ताउ तेइयउ जाइ । जिणणामें उच्चाटइ ण कोइ थंभणु मोहणु वसियरणु होइ । जिणणामें दिणि लब्भइ सुहाई सुह सोवत सेजहिं णिसि विहाइ । जिणणामें सज्जण देहिं लीह फणि मुहु गोवहिं दुज्जण दुजीह । घत्ता-जिण-गुण-चारित्तें दिठ-सम्मत्तें दुरिउ असेसु विणासइ। जं जं मणि भावइ तं सुहु पावइ दीणु ण कासु विभासइ ।।४।।
४२ एत्तहिं हाहारउ भउ तुरंतु धवलु वि धायउ कवडें रुवंतु । खामोयरि मेल्लिय दीह धाह हा कहिं गउ हा कहिं गयउ णाह । हा चंपा हिव-सुय सिरियवाल हा कनयकेय हा कणयमाल । हा बंधव चित्त-विचित्त वीर हउँ अच्छमि मरंति समुद्दतीर । धवलेण वुत्तु पुणु भलउ हुउ उच्चरिहु सयल सिरिवालु मुउ । पावियह चित्त-वद्धावणउ
रयणमँजूस रोवइ घणउ । वणिवर वि सयल रोवहिं तुरंत चोरह रक्खे मंजूसकंत । सिरिवालु जवण लग्गंतुखोर ___ता लिंतु परोहण लक्खु चोर । सिरिवालु वि धावतु जवणपुट्ठि को वंधिउ छोडा धवलु सेठ्ठि । घत्ता-णाह णाह विलवंती करुणु रुवंती रयण-मँजूस विहलग्गय । सिरिवालु णरेसरु महि-परमेसरु पई विणु हउँ जीवंती मुय ॥४२॥
४३ करुण-पलाउ करंति समुठ्ठिय कहिं गउ णाह छाडि सा दिठ्ठिय । कहिं गउ णाह णाह कोडीभड कहिं गउ विहडावण-तक्कर-घड । कहिं गउचलण-परोहण-चालण कहिं गउ जीव-दया-प्रतिपालण । कहिं गउ जण-पिय पिय जग-सुंदर सहसकूड-उग्घाडण-मंदिर। "वाविउ मई विण्णविउ सहेसह काहे वप्प दिण्ण परएसहँ । तेण कहिउ जं कहिउ णिमित्तिय सो मई तुझु विहायउ पुत्तिय । सव्वहँ कम्म-विवाउ वि बलियउ मुणिवर-भासिउ होइ ण अलियउ । वाहुडि रयणमँजूसा घोसइ 'सो कहि मयणासुंदरि होसइ ।
४१. १. ग ट्ठाकुरु । २. ग सुहाई । ३. ग सिन्जिहिं । ४२. १. ग हउं अच्छमि मज्झ समुद्दतीर । २. ग सिरिपालु जउ ण लग्गंतु खोर। ३. ग पुट्ठि। ४. ग . छोड़इ । ५. ग से ट्ठि । ४३. १. ख ग कलुणु । २. ग समर सूर विहडावण गय घड। ३. ख ग दयापरिपालण। ४. ख ग पाविउ
मइ विण्णिविउ सहेसहं । ५. ख ग सव्वहं कम्म विवाउ वि वलियउ। ६. ख ग सा।
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