SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५३ धर्मानुप्रेक्षा अब भोगोपभोग नामक तीसरे गुणव्रत को कहते हैं जाणित्ता संपत्ती, भोयणतंबोलवत्थमादिणं । जं परिमाणं कीरदि, भोउवभोयं वयं तस्त ॥३५०॥ अन्वयार्थः- [ संपत्ती जाणिवा ] जो अपनी सम्पदा सामर्थ्य जानकर [ भोयणतंबोलवत्थमादिणं] भोजन ताम्बूल वस्त्र आदिका [जं परिमाणं कीरदि ] परिमाण ( मर्यादा ) करता है [ तस्स भोउवभोयं वयं ] उस श्रावकके भोगोपभोग नामक गुणव्रत होता है । भावार्थः-भोजन ताम्बूल आदि एक बार भोगने योग्य पदार्थों को भोग कहते हैं और वस्त्र आभूषण आदि बारबार भोगने योग्य पदार्थों को उपभोग कहते हैं । इनका परिमाण यमरूप ( यावज्जीवन ) भी होता है और नित्य नियमरूप भी होता है सो यथाशक्ति अपनी सामग्रीका विचार कर यमरूप कर लेवे तथा नियमरूप भी जो कहे हैं उनका नित्य प्रयोजनके अनुसार नियम कर लिया करे । यह अणुव्रतका बड़ा उपकारी है। अब भोगोपभोगकी उपस्थित वस्तुको छोड़ता है उसकी प्रशंसा करते हैं जो परिहरेइ संतं, तस्स वयं थुव्वदे सुरिंदो वि । जोमणलड्डु व भक्खदि, तस्स वयं अप्पसिद्धियरं॥३५१॥ अन्वयार्थः-[ जो संतं परिहरेइ ] जो पुरुष, होतो हुई वस्तुको छोड़ता है [ तस्स वयं सुरिंदो वि थुम्बदे ] उसके व्रतकी सुरेन्द्र भी प्रशंसा करता है [ जो मणलड्ड व भक्खदि तस्स वयं अप्पसिद्धियरं ] और अनुपस्थित वस्तुका छोड़ना तो ऐसा है जैसे लड्डू तो हों नहीं और संकल्पमात्र मनमें लडडूकी कल्पना कर लड्डू खावे वैसा है। इसलिये अनुपस्थित वस्तुको तो संकल्प मात्र छोड़ना है, इस प्रकारसे छोड़ना व्रत तो है परन्तु अल्पसिद्धि करने वाला है, उसका फल थोड़ा है । यहाँ कोई प्रश्न करे कि भोगोपभोग परिमाणको तीसरा गुणव्रत कहा है परन्तु तत्वार्थसूत्र में तो तीसरा गुणव्रत देशव्रतको कहा है, भोगोपभोग परिमाणको तीसरा शिक्षाव्रत कहा है सो यह कैसे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy