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लोकानुप्रेक्षा
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घट्टमाणो ] वर्त्तमान पर्याय एक ही है : [ एत्तियमित्तो वि सो कालो ] सो जितनी पर्यायें हैं उतना ही व्यवहारकाल है । इस तरह द्रव्यों का वर्णन किया । +
अ द्रव्यों के कार्यकारणभावका निरूपण करते हैं
पुव्वपरिणाम जुत्तं, कारणभावेण वदे दव्वं । उत्तरपरिणामजुदं, तं चिय कज्जं हवे खियमा ॥ २२२॥
अन्वयार्थः– [ पुव्त्रपरिणामजरां ] पूर्व परिणाम युक्त [ दव्वं ] द्रव्य [ कारणभावेण वट्टदे ] कारणरूप है [ उचरपरिणामजुदं तं चिय ] और उत्तरपरिणामयुक्त द्रव्य [णियमा ] नियम से [ कज्जं हवे ] कार्यरूप है ।
अब वस्तुके तीनों कालों में ही कार्यकारणभाव निश्चय करते हैंकारणकज्जविसेसा, तिस्सु वि कालेसु होंति वत्थूणं । एक्केक्कम्मिय समए, पुव्युत्तरभावमासिज्ज ॥२२३॥
अन्वयार्थः – [ वत्थूणं ] वस्तुओंके [ पुष्बुतरभावमासिज ] पूर्व और उत्तर परिणामको पाकर [ तिस्सु वि कालेसु ] तीनों ही कालों में [ एक्केकम्मि य समए ] एक एक समय में [ कारणकजविसेसा ] कारण कार्यके विशेष [ होंति ] होते हैं । भावार्थ:-वर्त्तमान समय में जो पर्याय है सो पूर्वसमय सहित वस्तुका कार्य है । ऐसे ही सब पर्यायें जानना चाहिये । ऐसे समय २ कार्यकारणभावरूप है । वस्तु है सो अनन्त धर्मस्वरूप है ऐसा निर्णय करते हैंसंति अताता, तीसु वि कालेसु सव्वदव्वाणि । सव्वं पि अणेयंतं, तत्तो भणिदं जिणेंदेहि ॥२२४॥ अन्वयार्थः – [ सव्वदव्वाणि ] सब द्रव्य [ तीसु वि कालेसु ] तीनों ही कालों में
[ अणताणता ] अनन्तानन्त [ संति ] हैं, अनन्त पर्यायों सहित हैं [ तो ] इसलिये
÷ [ देखो गाथा ३०२ की टीका ] ।
+ [ भावार्थ:-संसार पर्यायका अन्त किसी जीवको आताही है किन्तु संसार-पर्यायोंसे मोक्ष की पर्यायें अनन्तगुणी हैं और भाविपर्यायोंका काल भूतपर्यायोंसे अनन्तगुना है। कभी भी भविष्यकालका अन्त नहीं होगा ( श्वे० मतमें विरुद्ध कथन है ) ] |
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