SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० कार्तिकेयानुप्रेक्षा अब व्यवहारकालका निरूपण करते हैं जीवाण पुग्गलाणं, जे सुहुमा बादरा य पज्जाया । तीदाणागदभूदा, सो ववहारो हवे कालो ॥२२०॥ अन्वयार्थः-[जीवाण पुग्गलाणं, ] जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्यके [ सुहुमा बादरा य पजाया ] सूक्ष्म तथा बादर पर्याय हैं [जे ] वे [ तीदाणागदभूदा ] अतीत हो चुके हैं, अनागत आगामी होयेंगे, भूत वर्तमान हैं [ सो ववहारो कालो हवे ] सो ऐसा व्यवहार काल होता है। मावार्थ:-जो जीव पुद्गलके स्थूल सूक्ष्म पर्याय हैं वे जो हो चुके अतीत कहलाए, जो आगामी होयेंगे उनको अनागत कहते हैं, जो वर्त रहे हैं सो वर्तमान कहलाते हैं। इनको जितना काल लगता है उसही को व्यवहारकाल नामसे कहते हैं सो जघन्य तो पर्यायकी स्थिति एक समयमात्र है और मध्यम, उत्कृष्ट अनेक प्रकार है । आकाशके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेश तक पुद्गलका परमाणु मन्दगतिसे जाता है उतने कालको समय कहते हैं, ऐसे जघन्ययुक्ताऽसंख्यात समयकी एक आवली होती है । संख्यात आवलीके समूहको एक उस्वास कहते हैं सात उस्वासका एक स्तोक होता है । सात स्तोकका एक लव होता है । साढ़े अड़तीस लवकी एक घड़ी होती है। वो घड़ीका एक मुहूर्ण होता है । तीस मुहूर्त्तका रातदिन होता है । पन्द्रह रातदिनका पक्ष होता है। दो पक्षका मास होता है। दो मासकी ऋतु होती है । तीन ऋतुका अयन होता है । दो अयनका वर्ष होता है इत्यादि पल्य, सागर, कल्प आदि व्यवहार काल अनेक प्रकार है। अब अतीत, अनागत, वर्तमान पर्यायोंकी संख्या कहते हैंतेसु अतीदा णता, अांतगुणिदा य भाविपज्जाया। एक्को वि वढमाणो, एत्तियमित्तो वि सो कालो ॥२२१॥ अन्वयार्थः-[ तेसु अतीदा पंता ] उन द्रव्योंकी पर्यायोंमें अतीतपर्याय अनन्त हैं [ य भाविपजाया अणंतगुणिदा] और अनागत पर्यायें उनसे अनन्तगुणी हैं [ एको वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy