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________________ अजीवाधिकार अजीव-द्रव्योंके नाम 'धर्माधर्म-नभः-काल-पुद्गलाः परिकीर्तिताः । अजीवा जीव तत्त्वज्ञैर्जीवलक्षणवर्जिताः ॥१॥ 'जीव-तत्वके ज्ञाताओं (आत्मज्ञों ) द्वारा धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ये अजीव कहे गये हैं; क्योंकि ये जीव-लक्षणसे रहित हैं।' व्याख्या-अजीवाधिकारके इस प्रथम पद्यमें अजीव-तत्त्वके भेदरूप पाँच मूल नाम दिये हैं--धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल । इन्हें 'अजीव' इसलिए कहा है कि ये जीवके उक्त लक्षणसे रहित हैं जो कि पिछले अधिकारमें 'उपयोगो विनिर्दिष्टस्तत्र लक्षणमात्मनः' (६) इत्यादि वाक्योंके द्वारा निर्दिष्ट है। यहाँ धर्म और अधर्म ये दो शब्द गुणवाचक अथवा पुण्य-पापके वाचक न होकर द्रव्य-वाचक हैं और उनकी जैनसिद्धान्त-मान्य छह द्रव्योंमें गणना है। इनका स्वरूपादि ग्रन्थमें आगे दिया है। पांचों अजीव-द्रव्योंकी सदा स्वस्वभाव में स्थिति "अवकाशं प्रयच्छन्तः प्रविशन्तः परस्परम् । मिलन्तश्च न मुञ्चन्ति स्व-स्वभावं कदाचन ॥२॥ (ये अजीव ) एक दूसरेको अवकाश-अवगाह प्रदान करते हुए, एक दूसरेमें प्रवेश करते हुए और एक दूसरेके साथ मिलते हुए भी अपने निजस्वभावको कभी नहीं छोड़ते हैं।' व्याख्या-यहाँ उक्त पाँचों अजीवोंकी स्थितिका निर्देश किया है : लिखा है कि ये पाँचों परस्परमें मिलते-जुलते, एक दूसरेमें प्रवेश करते और एक दूसरेको अवकाश देते हुए भी अपने-अपने स्वभावको कभी भी नहीं छोड़ते। धर्म अधर्मका, अधर्म धर्मका, धर्मअधर्म आकाशका और आकाश धर्म-अधर्मका, धर्मधर्म-आकाश कालका, काल धर्म-अधर्म आकाशका, धर्म-अधर्म-आकाश-काल पुद्गलका और पुद्गल धर्म-अधर्म-आकाश-कालका रूप कभी नहीं ग्रहण करता। १.धर्माधर्मावथाकाशं तथा कालश्च पुद्गलाः । अजीवाः खलु पञ्चैते निर्दिष्टाः सर्वदर्शिभिः ॥२॥ -तत्त्वार्थसार। अजीवकायाधर्माधर्माकाशपदगलाः ॥१॥ द्रव्याणि ॥२॥ कालश्च । ३९।-त. सूत्र । एदे कालागासा धम्माधम्मा य पुग्गला जीवा। लब्भंति दव्वसण्णं कालस्स दुणस्थि कायत्तं ॥१०२।। आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥१२४।। -पञ्चास्ति । २. अण्णोणं पविसंता दिता ओगासमण्णमण्णस्स। मेलंता वि य णिच्चं सगं सभावं ण वि जहंति ॥७॥-पञ्चास्ति । ३. भा, ज्या मोलंतश्च । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
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