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________________ हुआ है ४६ नि योगसार-प्राभृत विवक्षित-केवलज्ञानसे भिन्न आत्माका कालाणुओंकी संख्या और अवस्थिति ४४ कोई परमरूप नहीं २९ धर्म-अधर्म तथा पुद्गलोंकी अवस्थिति ४४ परवस्तुमें अणुमात्र भी राग रखनेका संसारी जीवोंकी लोकस्थिति और उनमें परिणाम संकोच-विस्तार परमेष्ठिरूपकी उपासना परम पुण्यबन्ध- जीव-पुद्गलोंका अन्यद्रव्यकृत उपकार की हेतु ३० संसारी और मुक्त जीवका उपकार ४६ कर्मास्रवको रोकनेका अनन्य उपाय संसारी जीवोंका पुद्गलकृत उपकार ४७ पर द्रव्योपासक मुमुक्षुओंकी स्थिति ३१ परमार्थसे कोई पदार्थ किसीका कुछ नहीं परद्रव्य-विचिन्तक और विविक्तात्म करता विचिन्तककी स्थिति ३२ पुद्गलके चार भेद और उनकी स्वरूपविविक्तात्माका स्वरूप व्यवस्था आत्माके स्वभावसे वर्ण-गंधादिका अभाव ३२ किस प्रकारके पुद्गलोंसे लोक कैसे भरा शरीर-योगसे वर्णादिकी स्थितिका स्पष्टीकरण . ३३ द्रव्यके मूर्तामूर्त दो भेद और उनके रागादिक औदायक भावोंको आत्माके लक्षण स्वभाव माननेपर आपत्ति ३३ कौन पुद्गल किसके साथ कर्मभावको जीवके गुणस्थानादि २० प्ररूपणाओंकी प्राप्त होते हैं स्थिति ३४ योग-द्वारा समायात-पुद्गलोंके कर्मरूपक्षायोपशमिक-भाव भी शुद्धजीवके रूप परिणमनमें हेतु नहीं ३५ आठ कर्मों के नाम कौन योगी कब किसका कैसे चिन्तन जीव कल्मपोदय-जनित भावका कर्ता न __ करता हुआ मुक्तिको प्राप्त होता है ३६ कि कर्मका कर्मों की विविधरूपसे उत्पत्ति कैसे होती है ५२ २. अजीवाधिकार जीव कभी कर्मरूप और कर्म जीवरूप अजीव-द्रव्योंके नाम ३७ नहीं होते पाँचों अजीव-द्रव्योंकी सदा स्व-स्वभाव जीवके उपादान-भावसे कांके करने में स्थिति पर आपत्ति अजीवोंमें कौन अमूर्तिक, कौन मूर्तिक - कर्म के उपादान-भावसे जीवके करनेपर _ और मूर्ति-लक्षण आपत्ति जीव-सहित पाँचों अजीवोंकी द्रव्यसंज्ञा ३६ उक्त दोनों मान्यताओंपर अनिवार्यद्रव्यका व्युत्पत्तिपरक लक्षण और सत्ता दोषापत्ति पुद्गलोंके कर्मरूप और जीवोंके सरागमय स्वरूप सर्व-पदार्थगत-सत्ताका स्वरूप रूप परिणामके हेतु द्रव्यका उत्पाद-व्यय पर्यायकी अपेक्षासे ४१ कर्मकृत-भावका कर्तृत्व और जीवका अकतत्व गुण-पर्यायके बिना द्रव्य और द्रव्यके । * बिना गुण-पर्याय नहीं धर्माधर्मादि द्रव्योंकी प्रदेश व्यवस्था ४२ एक दूसरेका कर्तृत्व ५६ परमाणुका लक्षण ४२ क्रोधादिकृत-कर्मको जीवकृत कैसे कहा आकाश और पुद्गलोंकी प्रदेश-संख्या ४४ जाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org . AD कार
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
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