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विषय-सूची
१.जीवाधिकार
___पृष्ठ विषय भाष्यका मंगलाचरण
२ ज्ञान स्वभावसे स्व-परको जाजता है. १८ मूलका मंगलाचरण और उद्देश्य ३ क्षायिक-क्षायोपशमिक ज्ञानोंकी स्थिति १९ स्वरूप-जिज्ञासासे जीवाजीव-लक्षणको केवलज्ञानकी त्रिकालगोचर सभी सत्___ जानने की सहेतुक प्रेरणा
असत्-पदार्थोंको युगपत् जानने में जीवाजीव-स्वरूपको वस्तुतः जाननेका प्रवृत्ति
.५ सत् और असत् पदार्थ कौन ? स्वरूपको परद्रव्य-बहिर्भूत जाननेका भूत-भावी पदार्थोंको जाननेका रूप परिणाम
६ जानके सब पदार्थों में युगपत् प्रवृत्त न जीवका लक्षण उपयोग और उसके दर्शन- होनेसे दोषापत्ति ___ज्ञान दो भेद
६ आत्माके घातिकर्म-क्षयोत्पन्न-परमरूपकी दर्शनके चार भेद और उसका लक्षण ७ श्रद्धाका पात्र ज्ञानका लक्षण और उसके आठ भेद ७ आत्माके परमरूप श्रद्धानीको अव्ययपदकेवलजान-दानादिके उदयमें कारण ८ की प्राप्ति केवलज्ञान-दर्शनको युगपत् और शेपकी आत्माके परमरूपकी अनुभूतिका मार्ग २२ क्रमशः उत्पत्ति
९ शुतका
श्रुतके द्वारा भी केवल-सम आत्मबोधकी मिथ्याज्ञान-सम्यग्ज्ञानके कारणोंका निर्देश ९ प्राप्ति मिथ्यातका स्वरूप और उसकी लीलाका आत्माके सम्यक चारित्र कब होता है २४ निर्देश
१०
ज्ञानके कपाय-वश होनेपर अहिंसादि तर्गनमोहके दराजन्य- सियाव कोई व्रत नहीं ठहरता
२५ तीन भेद
२० ज्ञानके आत्मरूप-रत होनेपर हिंसादिक मिथ्यात्व-भावित-जीवकी मान्यता ११ पापोंका पलायन सम्यक्त्वका स्वरूप और उसकी क्षमता ११ आत्माके निर्मलज्ञानादिरूपध्यानसे कर्मसम्यक्त्व के क्षायिकादि भेद और उनमें
च्युति साध्य-साधनता
११ पर-द्रव्य-रत-योगीकी स्थिति आत्मा और ज्ञानका प्रमाण तथा ज्ञानका निश्चय-चारित्रका स्वरूप सर्वगतत्व
व्यवहार-सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रका रूप २७ आत्मासे ज्ञान-शेयको अधिक माननेपर। दोपापत्ति
स्वभाव-परिणत आत्मा ही वस्तुतः मुक्तिज्ञेय-क्षिप्त-ज्ञानकी व्यापकताका स्पष्टीकरण १६
मार्ग ज्ञेयको जानता हुआ ज्ञान ज्ञेयरूप नहीं निश्चयसे आत्मा दर्शनज्ञान-चारित्ररूप २८ होता
१७ आत्मोपासनासे भिन्न शिव-सुख-प्राप्तिका ज्ञानस्वभाव से दूरवर्ती पदार्थों को भी
कोई उपाय नहीं
२६ जानता है।
१८ आत्मस्वरूपकी अनुभूतिका उपाय For Private & Personal Use Only
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