SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगसार- प्राभृत आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने दूसरे अधिकारसे लेकर अन्त तक के सब पद्योंको प्रायः एकएक करके कापियोंके एक-एक पृष्ठपर लिख दिया और इससे मुझे उनका अनुवाद करने में सुविधा तथा सहायता मिली और वह कोई एक महीने में ही ३१ मई १६६४ को सम्पन्न हो गया। इसके बाद व्याख्याका कार्य ११ जून १६६४ को आरम्भ होकर यथावकाश चलता रहा और ३१ जुलाई १६६५ को पूरा हो गया । भाष्यके पूरा हो जानेपर उसकी प्रेसकापीकी चिन्ता खड़ी हुई, दो-एक विद्वानोंसे पत्र व्यवहार किया गया, उन्होंने आनेकी स्वीकारता भी दी, परन्तु अन्तको कोई भी नहीं आ सका और इससे प्रेस कापीका कार्य बराबर टलता रहा । यह देखकर और मेरी अस्वस्थतादिको मालूम करके चिरंजीव डॉ० श्रीचंदने अनुरोध किया कि प्रेस कापीका काम मुझे दिया जावे, बाद में आप उसका सुधार कर लेवें । उन्होंने सन् १९६७ में प्रेस कापी की (जो २ सितम्बर १९६७ को प्रेस भेजी गयी) और अच्छी कापी की, जिसमें मुझे सुधार के लिए विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ा, इसलिए वे आभारके पात्र हैं । यद्यपि वे अपने हैं और अपनोंका आभार प्रदर्शित करनेकी जरूरत नहीं होती; फिर भी चूँकि उन्होंने बहुत हिम्मतका काम किया है और मुझे निराकुल बनाया है, इसलिए मैं उनका आभार मानना अपना कर्तव्य समझता हूँ । अन्तमें भारतीय ज्ञानपीठ और उसके मंत्री श्री लक्ष्मीचन्दजीका आभार प्रकट किये बिना भी मैं नहीं रह सकता, जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थको अपने यहाँसे प्रकाशित करनेकी स्वीकारता देकर और प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत किया है। ३४ एटा, आषाढ़ कृ० ५ सं २०२५ ता० १५ जून १९६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' www.jainelibrary.org.
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy