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कर्मजनित देहादिक सब विकार चैतन्यरहित हैं त्रयोदश गुणस्थान और उनकी पौद्गलिकता उक्त गुणस्थानोंको कौन जीव कहते हैं। और कौन नहीं प्रमत्तादि-गुणस्थानोंकी वन्दनासे चेतन
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मुनिवन्दित नहीं वन्दनाकी उपयोगिता
अचेतन देह के स्तुत होनेपर चेतनात्मा स्तुत नहीं होता
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विभिन्नताका एक सिद्धान्त और उससे
चेतनकी देहसे भिन्नता
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जी कुछ इन्द्रियगोचर वह सब आत्मबाह्य ६१ इन्द्रियगोचर-रूपका स्वरूप राग-द्वेषादि विकार सब कर्मजनित
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जीव कभी कर्मरूप और कर्म कभी जीवरूप नहीं होता
आत्माको द्रव्यकर्मका कर्ता माननेपर दोषापत्ति
कर्मोदयादि- संभव-गुण सब अचेतन अजीव तत्त्वको यथार्थ जाने बिना स्वस्वभावोपलिब्ध नहीं बनती
३.
आवाधिकार
आसव के सामान्य हेतु आसव के विशेष हेतु मोहको बढ़ानेवाली बुद्धि उक्त बुद्धिसे महाकर्मास्रव
एक दूसरी बुद्धि जिससे मिध्यात्व नहीं
विषय-सूची
किसका किसके साथ कार्य-कारणभाव कर्मको जीवका कर्ता माननेपर आपत्ति
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छूट पाता
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कर्माकी हेतुभूत एक तीसरी बुद्धि चौथी बुद्धि जिससे कर्मास्रव नहीं रुकता ६८ निश्चय और व्यवहारसे आत्माका कर्तृत्व ६८ जीव परिणामाश्रित कर्मास्रव, कर्मदयाश्रित जीव परिणाम
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एकके किये हुए कर्मके फलको दूसरे के भोगनेपर आपत्ति कर्म कैसे जीवका आच्छादक होता है। कपाय स्त्रोतसे आया हुआ कर्म जीवमें ठहरता है निष्कपाय-जीवके कर्मास्रव माननेपर
दोषापत्ति
एक द्रव्यका परिणाम दूसरेको प्राप्त होनेपर दोषापत्ति
कौन स्वपर - विवेकको प्राप्त नहीं होता कर्म-संतति-हेतु अचारित्रका स्वरूप
शुभाशुभ भावका
राग-द्वेष से अचारित्री
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पाँचवीं बुद्धि जिससे कर्मास्रव नहीं रुकता ७१ स्वदेह-परदेह के अचेतनत्वको न जाननेका
फल
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कर्ता
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परमें आत्मीयत्व - बुद्धिका कारण कौन किससे उत्पन्न नहीं होता
कपाय परिणाम किसके होते हैं और अपरिणामीका स्वरूप
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परिणामको छोड़कर जीव-कर्म के एक दूसरे के गुणोंका कर्तृत्व नहीं पुद्गलापेक्षिक जीवभावों की उत्पत्ति और औदयिक भावों की स्थिति निरन्तर रजोग्राही कौन ?
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पुण्य-पापका भेद नहीं जाननेवाला चारित्र
भ्रष्ट
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ॐ
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स्व चारित्र से भ्रष्ट कौन ?
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स्वचारित्र से भ्रष्ट चतुर्गतिके दुःख सहते हैं ७६
देवेन्द्रोंका विषय-सुख भी दुःख है।
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इन्द्रियजन्य सुख दुःख क्यों है ? सांसारिक सुखको दुःख न माननेवाला अचारित्री
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कौन सचारित्रका पालन करता हुआ भी कर्मोसे नहीं छूटता
बन्धका कारण वस्तु या वस्तुसे उत्पन्न दोष
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शुद्ध-स्वात्माकी उपलब्धि किसे होती है ७६
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