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________________ पद्य ८४-८९] चारित्राधिकार भवातीत मार्गगामियोंका स्वरूप भावेषु कर्मजातेषु मनो येषां निरुद्यमम् । भव-भोग-विरक्तास्ते भवातीताध्वगामिनः ॥८७॥ 'कर्मजनित पदार्थोंमें जिनका मन उद्यमरहित है वे भवभोगसे विरक्त (योगी) 'भवातीतमार्गगामी' होते हैं। व्याख्या-जिन भवातीतमार्गगामियोंका पिछले पद्यमें उल्लेख है उनका इस पद्यमें संक्षिप्त रूप दिया गया है-यह बतलाया है कि 'जिनका मन कर्मोदयजनित पदार्थोमें निरुद्यम रहता है-अनुरक्ति आदिके रूपमें कोई प्रवृत्ति नहीं करता-और जो संसारके भोगोंसे सदा विरक्त रहते हैं उन्हें 'भवातीतमार्गगामी' कहते हैं। ऐसे मुनियोंकी प्रवृत्ति भवाभिनन्दी मुनियोंसे बिलकुल विपरीत 'अलौकिकी' होती है। भवातीतमार्गगामियोंका मार्ग सामान्यकी तरह एक ही एक एव सदा तेषां पन्थाः सम्यक्त्वचारिणाम् । व्यक्तीनामिव सामान्यं दशाभेदेऽपि जायते ॥८॥ 'जो भवातीतमार्गगामी सम्यक् चारित्री हैं उनका मार्ग दशाका कुछ भेद होनेपर भी एक ही है, उसी प्रकार जिस प्रकार कि व्यक्तियोंमें अवस्थाका कुछ भेद होनेपर भी समानता-द्योतक धर्म एक ही होता है।' व्याख्या-जिन भवातीतमार्गगामियोंका पिछले पद्यमें उल्लेख है उनके विषयमें यहाँ दो बातें खासतौरसे कही गयी हैं--एक तो यह कि वे सब सम्यक्चारित्री होते हैं, दूसरे यह कि उनमें परस्पर पन्थभेद नहीं होता--सबका पन्थ एक ही रहता है, उसी प्रकार जिस प्रकार कि व्यक्तियोंमें-विशेषों में--अवस्थाका कुछ भेद होनेपर भी सामान्य सदा एक ही रहता है। शब्दभेदके होनेपर निर्वाणतत्त्व एक ही है निर्वाणसंज्ञितं तत्त्वं संसारातीतलक्षणम् । एकमेवावबोद्धव्यं शब्दभेदेऽपि तत्त्वतः ॥८६॥ 'संसारातीत लक्षणको लिये हुए जो निर्वाण-संज्ञा प्राप्त ( मोक्ष ) तत्त्व है उसे शब्दभेदके होनेपर भी वस्तुतः एक ही जानना चाहिए।' व्याख्या-निर्वाण नामका तत्त्व, जिसे सात तत्त्वोंमें 'मोक्ष' नामसे गिनाया गया है और जिसका लक्षण संसारपनेका अभाव है-अर्थात् जिसमें भव-परिवर्तन नहीं, जन्ममरण नहीं, शरीर नहीं, इन्द्रियाँ नहीं, इन्द्रियों-द्वारा विषयग्रहण नहीं, राग-द्वेप-मोह नहीं, क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं, हास्य-रति-अरति-शोक-भय-जुगुप्सा नहीं, कामसेवा नहीं, किसी प्रकारकी इच्छा नहीं, तृष्णा नहीं, अहंकार-ममकार नहीं, संयोग-वियोग नहीं, इष्टवियोग १. मु सम्यपरायिणां । २. मु दशाभेदो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
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