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पद्य ३६-४१] संवराधिकार
१०७ व्याख्या-यह आत्मा स्वयं स्वभावसे पर पदार्थको देखता, जानता तथा श्रद्धान करता है-उसके इस देखने, जानने आदिमें वस्तुतः दूसरेका कोई आश्रय अथवा सहारा नहीं, उसी प्रकार जिस प्रकार कि शंखका चूर्ण दूसरेको धवल-शुक्ल अथवा निर्मल करनेमें किसी अन्यका सहारा नहीं लेता।
मोह अपने संगसे जीवको मलिन करता है मोहेन मलिनो जीवः क्रियते निजसंगतः।
स्फटिको रक्त-पुष्पेण रक्ततां नीयते न किम् ॥३६।। 'जीव मोहके द्वारा अपनी संगतिसे मलिन किया जाता है । (ठीक है) रक्त पुष्पके योगसे क्या स्फटिक रक्तताको प्राप्त नहीं होता ?-होता ही है।'
व्याख्या-यह जीवात्मा अपने निर्मल दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप स्वभावमें जो प्रवृत्त नहीं हो रहा है उसका कारण मोहका संग है। मोहने अपनी संगतिसे इस जीवको मलिन कर रखा है, उसी प्रकार जिस प्रकार कि लाल फूल (रक्त पुष्प ) अपने सम्बन्धसे निर्मल-धवल स्फटिकको लाल बना देता है।
मोहका विलय हो जानेपर स्वरूपकी उपलब्धि निजरूपं पुनर्याति मोहस्य विगमे सति ।
उपाध्यभावतो याति स्फटिकः स्वस्वरूपताम् ॥४०॥ 'मोहके विनष्ट होनेपर जीव पुनः अपने निर्मल रूपको प्राप्त होता है ( उसी प्रकार जिस प्रकार कि) रक्तपुष्पादिरूप उपाधिका अभाव हो जानेसे स्फटिक अपने शुद्ध स्वरूपको प्राप्त होता है।'
व्याख्या-पिछले पद्यमें जिस मोहके संग अथवा सम्बन्धसे जीवके मलिन होनेकी बात कही गयी है, उसी मोहका सम्बन्ध छूट जानेपर यह जीव फिरसे अपने स्वरूप को प्राप्त होता है उसी प्रकार जिस प्रकार स्फटिक रक्तपुष्पादि रूप उपाधिका अभाव हो जानेपर पुनः अपने स्वच्छ निर्विकार स्वरूपको प्राप्त हो जाता है। पूर्व पद्य तथा इस पद्यमें स्फटिकका दृष्टान्त जीवके निर्विकार और सविकार रूपका अथवा स्वभाव और विभवका बोध कराने के लिए बड़ा ही सुन्दर एवं तथ्यपूर्ण है।
जो मोहका त्यागी वह अन्य सब द्रव्योंका त्यागी इत्थं विज्ञाय यो मोहं दुःखबीजं विमुञ्चति ।
सोऽन्यद्रव्यपरित्यागी कुरुते कर्म-संवरम् ।।४१।। 'इस प्रकार मोहको दुःखका बीज जानकर जो (योगी) उसे छोड़ता है वह पर-द्रव्यका परित्यागी हुआ कर्मोका संवर करता है-कर्मों के आस्रवको रोकता है।' ___व्याख्या-यहाँ पूर्व कथनका उपसंहार करते हुए, मोहको दुःखका बीज बतलाया है और यह निर्दिष्ट किया है कि जो मोहको दुःख-बीज समझकर छोड़ता है वह परद्रव्योंसे अपना सम्बन्ध त्यागता है; क्योंकि वास्तव में मोह ही परद्रव्यों के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ता है। जो परद्रव्योंका सम्बन्ध त्यागता है वह कर्मोंका संवर करता है-अच्छे-बुरे
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