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________________ धात्री दोष का स्वरूप दूत नामक दोष का स्वरूप निमित्त दोष का स्वरूप आजीव दोष का स्वरूप वनीपक दोष का स्वरूप चिकित्सा दोष का स्वरूप क्रोध, मान, माया व लोभ दोषों का वर्णन पूर्व स्तुति दोष का स्वरूप पश्चात् स्तुति दोष का स्वरूप विद्यानामक दोष का स्वरूप मन्त्रोत्पादक दोष का स्वरूप चूर्ण दोष का स्वरूप मूल कर्म दोष का स्वरूप दस अशन दोषों का प्रतिपादन शंकित दोष का स्वरूप प्रक्षित दोष का स्वरूप निक्षिप्त दोष का स्वरूप पिहित दोष का स्वरूप संव्यवहार दोष का स्वरूप दायक दोष का स्वरूप उन्मिश्र दोष का स्वरूप उपरिणत दोष का स्वरूप लिप्त दोष का स्वरूप परित्यजन दोष का स्वरूप संयोजना दोष का स्वरूप एवं प्रमाण दोष का वर्णन अंगार और धूम दोष का वर्णन आहार ग्रहण करने के कारण आहार त्याग करने के कारण मुनि कैसा आहार ग्रहण करते हैं इसका वर्णन चौदह मल दोषों का वर्णन अपने उद्देश्य से बनाये हुए आहार की अशुद्धता का वर्णन भाव से शुद्ध आहार का वर्णन पिण्डदोष के द्रव्य एवं भाव की अपेक्षा दो भेद एषणा समिति के निर्दोष पालन करने का आदेश साधु के भोजन का परिमाण Jain Education International ४४७ ४४८ ४४६ ४५० ४५१ ४५२ ४५३-४५४ ४५५ ४५६ ४५७ ४५८-४५६ ४६० ४६१ ४६२ ४६३ ૪૬૪ ४६५ ४६६ ४६७ ४६८-४७१ ४७२ ४७३ ४७४ ४७५ ४७६ ४७७ ४७८-४७६ ४८०-४८१ ४८२-४८३ ४८४ ४८५-४८६ ४८७ ४८८-४८६ ૪૨૦ ४६१ For Private & Personal Use Only ३५० ३५१-३५२ ३५३ ३५३ ३५४ ३५४ ३५५-३५६ ३५६ ३५७ ३५७ ३५८ ३५६ ३५६ ३६० ३६१ ३६२ ३६२ ३६३ ३६३ ३६३-३६५ ३६५ ३६६ ३६६-३६७ ३६७ ३६७-३६८ ३६८ ३६८-३७० ३७०-३७१ ३७२ ३७३-३७४ ३७४-३७५ ३७५-३७६ ३७६-३७७ ३७७ ३७८ विषयानुक्रमfter / ५३ www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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