SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५४] [मूलाचारे विषयस्थ षड्विधातीचारस्य कृतकारितानुमतस्य त्रिविवेन निरसनं रात्रिक, ईर्यापथे भवमैर्यापथिक षड्जीवनिकायविषयातीचारस्य निरसनं ज्ञातव्यं, पक्षे भवं पाक्षिक पंचदशाहोरात्रविषयस्य षड्विधनामादिकारणस्य कृतकारितानुमतस्य मनोवचनकायः परिशोधनं, चतुर्मासेषु भवं चातुर्मासिकं, संवत्सरे भवं सांवत्सरिकं । चतुसिमध्ये संवत्सरमध्ये नामादिभेदेन षड्विधस्यातीचारस्य बहुभेदभिन्नस्य वा, कृतकारितानुमतस्य मनोवचनकायः निरसनं, उत्तमार्थे भवमौत्तमार्थं यावज्जीवं चतुर्विधाहारस्य परित्यागः सर्वातिचारप्रतिक्रमणस्यात्रान्तर्भावो द्रष्टव्यः, 'एवं प्रतिक्रमणसप्तकं द्रष्टव्यम् ॥६१५॥ अतीचार जोकि कृत, कारित व अनुमोदना से किए गये हैं एवं नाम स्थापना आदि छह निमित्तों से हुए हैं, उनका मन-वचन-काय से निरसन करना रात्रिक प्रतिक्रमण है। ऐर्यापथिक-ईर्यापथ सम्बन्धी प्रतिक्रमण, अर्थात् ईपिथ से चलते हुए मार्ग में छह जीव निकाय के विषय में जो अतीचार हुआ है उसको दूर करना ऐर्यापथिक है । पाक्षिक-पक्ष सम्बन्धी प्रतिक्रमण, पन्द्रह अहोरात्र विषयक जो दोष हुए हैं, जोकि कृत, कारित और अनुमोदना से एवं नाम आदि छह के आश्रय से हुए हैं उनका मनवचनकाय से शोधन करना सो पाक्षिक प्रतिक्रमण है। चातुर्मासिक-चार महीने सम्बन्धी प्रतिक्रमण । सांवत्सरिक-एक वर्ष सम्बन्धी प्रतिक्रमण। चातुर्मास के मध्य और संवत्सर के मध्य हुए अतीचार जोकि नाम, स्थापना आदि छह कारणों से अथवा बहुत से भेदों से सहित, और कृत, कारित और अनुमोदना से होते हैं उनको मनवचनकाय से दूर करना सो चातुर्मासिक और वार्षिक कहलाते हैं। __ उत्तमार्थ-उत्तम-अर्थ सल्लेखना से सम्बन्धित प्रतिक्रमण उत्तमार्थ प्रतिक्रमण है इसमें यावज्जीवन चार प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है अर्थात् मरणान्त समय जो सल्लेखना ली जाती है उसी में चार प्रकार के आहार का त्याग करके दीक्षित जीवन के सर्वदोषों का प्रतिक्रमण किया जाता है। ____ सर्वातिचार प्रतिक्रमण का इसी में अन्तर्भाव हो जाता है। इस तरह प्रतिक्रमण के सात भेद जानना चाहिए। भावार्थ-दिवस के अन्त में, सायंकाल में, दैवसिक प्रतिक्रमण होता है। रात्रि के अन्त में रात्रिक प्रतिक्रमण होता है। ईर्यापथ से चलकर आने के बाद ऐर्यापथिक होता है। प्रत्येक चतुर्दशी या अमावस्या अथवा पौर्णमासी को पाक्षिक प्रतिक्रमण होता है। कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी या पूर्णिमा को तथा फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी या पूर्णिमा को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण होता है। आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी या पूर्णिमा को सांवत्सरिक प्रतिक्रमण होता है । तथा सल्लेखनाकाल में औत्तमार्थिक प्रतिक्रमण होता है। १ क एवं सप्त प्रकार प्रतिक्रमणं द्रष्टव्यम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy