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________________ ४५२] [मूलाचारे यस्य क्रियते वन्दना तेन कथं प्रत्येषितव्येत्याह तेण च पडिच्छिदव्य गारवरहिएण सुद्धभावण । किदियम्मकारकस्सवि संवेगं संजणंतेण ॥६१२॥ तेण च तेनाचार्येण पडिच्छिदव्वं प्रत्येषितव्यमभ्युगन्तव्यं गौरवरहितेन ऋद्धिवीर्यादिगवरहितेन कृतिकर्मकारकस्य वन्दनायाः कर्तुरपि संवेगधर्मे धर्मफले च हर्ष संजनयता सम्यग्विधानेन कारयता शुद्धपरिणामवता वन्दनाऽभ्युपगंतव्येति ॥६१२।। वन्दनानियुक्ति संक्षेपयन् प्रतिक्रमणे नियुक्ति सूचयन्नाह वंदणणिज्जुत्ती पुण एसा कहिया मए समासेण । पडिकमणणिजुत्ती पुण एतो उड्ड पवक्खामि ॥६१३॥ वन्दनानियुक्तिरेषा पुनः कथिता मया संक्षेपेण प्रतिक्रमणनियुक्ति पुनरित ऊर्ध्व वक्ष्य इति ॥६१३॥ तां निक्षेपस्वरूपेणाह णामवणा दव्वे खेत्ते काले तहेव भावे य। एसो पडिक्कमणगे णिक्खेवो छव्विहो णेप्रो॥६१४॥ जिनकी वन्दना की जाती है वे वन्दना को किस प्रकार से स्वीकार करें ? सो ही बताते हैं ___ गाथार्थ-कृतिकर्म करनेवाले को हर्ष उत्पन्न करते हुए वे गुरु गर्वरहित शुद्ध भाव से वन्दना स्वीकार करें॥६१२॥ आचारवृत्ति-शुद्ध परिणामवाले वे आचार्य ऋद्धि और वीर्य आदि के गर्व से रहित होकर वन्दना करनेवाले मुनि के धर्म और धर्म के फल में हर्ष उत्पन्न करते हुए उसके द्वारा की गई वन्दना को स्वीकार करें। भावार्थ-जब शिष्य मुनि आचार्य, उपाध्याय आदि गुरुओं की या अपने से बड़े मुनियों की वन्दना करते हैं तो बदले में वे आचार्य आदि भी 'नमोस्तु' शब्द बोलकर प्रतिबन्दना करते हैं । यही वन्दना की स्वीकृति होती है। वन्दना-नियुक्ति को संक्षिप्त करके अब आचार्य प्रतिक्रमण-नियुक्ति को कहते हैं गाथार्थ—मैंने संक्षेप से यह वन्दना-नियुक्ति कही है अब इसके बाद प्रतिक्रमण नियुक्ति को कहूँगा ॥६१३॥ प्राचारवृत्ति-गाथा सरल है। उस प्रतिक्रमण नियुक्ति को निक्षेप स्वरूप से कहते हैं गाथार्थ—नाम, स्थापना, द्रव्य,क्षेत्र, काल और भाव, प्रतिक्रमण में यह छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए ॥६१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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