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[मूलाचारे एकतीर्थकरनामोच्चारणं सिद्धाचार्यादिनामोच्चारणं च नामावश्यकवंदनानियुक्तिरेवतीर्थकरप्रतिविबस्य सिद्धाचार्यादिप्रतिविबानां च स्तवन स्थापनावंदनानिर्यक्तिस्तेषामेव शरीराणां स्तवनं द्रव्यवंदनानियुक्तिस्तैरेव यत्क्षेत्रमधिष्ठितं कालश्च योऽधिष्ठितस्तयोः स्तवन क्षेत्रवन्दना च, एकतीर्थकरस्य सिद्धाचार्यादीनां च शुद्धपरिणामेन यद्गुणस्तवनं तद्भावावश्यकवंदनानियुक्तिः नामाथवा जातिद्रव्यगुणक्रियानिरपेक्षं संज्ञाकर्म वंदनाशब्दमात्र नाम, वन्दनापरिणतस्य प्राभतज्ञोप्रतिकृतिवन्दनास्थापनावंदनावन्दनाव्यावर्णनप्राभतज्ञोऽनुपयुक्त आगमद्रव्यवंदना शेषः पूर्ववदिति । एष वंदनाया निक्षेप: पड़विधो भवति ज्ञातव्यो नामादिभेदेनेति ॥५७७।।
नामवंदनां प्रतिपादयन्नाह
किदियम्मं चिदियम्म पूयाकम्मं च विणयकम्मं च ।
कादव्वं केण कस्स व कधे व कहिं व कदिखुत्तो ।।५७८।।
पूर्वगाथार्धेन वंदनाया एकार्थः कथ्यतेऽपरार्द्धन तद्विकल्पा इति । कृत्यते छिद्यते अष्टविधं कर्म येनाक्षरकदंबकेन परिणामेन क्रियया वा तत्कृतिकर्म पापविनाशनोपायः। चीयते समेकीक्रियते संचीयते
प्राचारवृत्ति-एक तीर्थंकर का नाम उच्चारण करना, तथा सिद्ध, आचार्यादि का नाम उच्चारण करना नाम-वन्दना आवश्यक नियुक्ति है । एक तीर्थंकर के प्रतिबिम्ब का तथा सिद्ध आचार्य आदि के प्रतिबिम्बों का स्तवन करना स्थापनावन्दना नियुक्ति है। एक तीर्थकर के शरीर का तथा सिद्ध आचार्यों के शरीर का स्तवन करना द्रव्य-वन्दना नियुक्ति है । इन एक तीर्थकर, सिद्ध और आचार्यों से अधिष्ठित जो क्षेत्र हैं उनकी स्तुति करना क्षेत्र-वन्दना नियुक्ति है। ऐसे ही इन्हीं से अधिष्ठित जो काल हैं उनकी स्तुति करना काल वन्दना नियुक्ति है। एक तीर्थंकर और सिद्ध तथा आचार्यों के गुणों का शुद्ध परिणाम से जो स्तवन है वह भाववन्दना नियुक्ति है।
___ अथवा जाति, द्रव्य व क्रिया से निरपेक्ष किसी का 'वन्दना' ऐसा शब्द मात्र से संज्ञा कर्म करना नाम वन्दना है । वन्दना से परिणत हुए का जो प्रतिबिम्ब है वह स्थापनावन्दना है। वन्दना के वर्णन करनेवाले शास्त्र का जो ज्ञाता है किन्तु उसमें उस समय उपयोग उसका नहीं है वह आगमद्रव्य वन्दना है। बाकी के भेदों को पूर्ववत् समझ लेना चाहिए । वन्दना का यह निक्षेप नाम आदि के भेद से छह प्रकार का है ऐसा जानना।
नाम वन्दना का प्रतिपादन करते हैं--
गाथार्थ-कृतिकर्म, चितिकर्म, पूजाकर्म और विनयकर्म ये वन्दना के एकार्थ नाम हैं। किसको, किसकी, किस प्रकार से, किस समय और कितनी वार वन्दना करना चाहिए।॥५७८।।
प्राचारवृत्ति-गाथा के पूर्वार्ध से वन्दना के पर्यायवाची नाम कहे हैं अर्थात कृतिकर्म आदि वन्दना के ही नाम हैं । तथा गाथा के अपराध से वन्दना के भेद कहे हैं।
कृतिकर्म-जिस अक्षर समूह से या जिस परिणाम से अथवा जिस क्रिया से आठ प्रकार का कर्म काटा जाता है-छेदा जाता है वह कृतिकर्म कहलाता है अर्थात् पापों के विनाशन १क ते पश्चाद्धन। २ क पायं। क्रियते समो वा क्रियते ।
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