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पिण्डशुद्धि-अधिकारः]
[३५७ कीर्तिविश्रुता लोके । यद्दातुरग्रतो दानग्रहणात्प्रागेव ब्रूते तस्य पूर्वसंस्तुतिदोषो नाम जायते। विस्मृतस्य च दानसम्बोधनं त्वं पूर्व महादानपतिरिदानी किमिति कृत्वा विस्मृत इति सम्बोधनं करोति यस्तस्यापि पूर्वसंस्तुतिदोषो भवतीति । यां कीति ब्रूते, यच्च स्मरणं करोति तत्सर्वं पूर्वसंस्तुतिदोषो नग्नाचार्यकर्तव्यदोषदर्शनादिति ॥४५॥
पश्चात्संस्तुतिदोषमाह
पच्छा संथुदिदोसो दाणं गहिदूण तं पुणो कित्ति।
विक्खादो दाणवदी तुज्झ असो विस्सुदो वेति ॥४५६॥
पश्चात्संस्तुतिदोषो दानमाहारादिकं गृहीत्वा ततः पुनः पश्चादेवं कीति ब्रूते विख्यातस्त्वं दानपतिस्त्वं, तव यशोविश्रुतमिति ब्रूते यस्तस्य पश्चात् संस्तुतिदोषः, कार्पण्यादिदोषदर्शनादिति ॥४५६॥
विद्यानामोत्पादनदोषमाह
विज्जा साधितसिद्धा तिस्से प्रासापदाणकरणेहि।
तस्से माहप्पेण य विज्जादोसो दु उप्पादो ॥४५७॥
विद्या नाम साधितसिद्धा साधिता सती सिद्धा भवति तस्या विद्याया आशाप्रदानकरणेन तुभ्यमहं विद्यामिमां दास्यामि तस्याश्च माहात्म्येन यो जीवति तस्य विद्योत्पादनो नाम दोषः आहाराद्याकांक्षाया
हई है । इस तरह आहार ग्रहण के पहले ही यदि मुनि दाता के सामने बोलते हैं तो उनके पूर्वसंस्तति नाम का दोष होता है। यदि वह भूल गया है तो उसको याद दिलाना कि तुम पहले महादानपति थे इस समय किस कारण से भूल गये हो। इस तरह यदि कहते हैं तो भी उन मुनि के पूर्व-संस्तुति नाम का दोष होता है । यह नग्नाचार्य-स्तुतिपाठक भाटों का कार्य है। इस तरह स्तुति-प्रशंसा करना यह मुनियों का कार्य नहीं है अतः यह दोष है।
पश्चात्-संस्तुति दोष को कहते हैं
गाथार्थ-दान को लेकर पुनः कीर्ति को कहते हैं । तुम दानपति विख्यात हो, तुम्हारा यश प्रसिद्ध है यह पश्चात्संस्तुति दोष है । ४५६॥
प्राचारवृत्ति-आहार आदि दान ग्रहण करने के पश्चात् जो इसतरह कीति को कहते हैं कि 'तुम दानपति हो, तुम विख्यात हो, तुम्हारा यश प्रसिद्ध हो रहा है' यह पश्चात्संस्तुति दोष है, चूंकि इसमें कृपणता आदि दोष देखे जाते हैं।
विद्या नामक उत्पादन-दोष को कहते हैं
गाथार्थ-जो साधितसिद्ध है वह विद्या है। उसकी आशा प्रदान करने या उसके माहात्म्य से आहार उत्पन्न कराना विद्या दोष है ॥४५७।।
प्राचारवृत्ति-जो साधित करने पर सिद्ध होती हैं उन्हें विद्या कहते हैं । उन विद्याओं की आशा देना अर्थात् 'मैं तुम्हें इस विद्या को दूंगा', अथवा उस विद्या के माहात्म्य से जो अपना जीवन चलाते हैं उनके विद्या नाम का उत्पादन दोष होता है। इसमें आहार आदि की
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