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[मूलाचारे
शार्थो दोष इति । ईश्वरो व्यक्ताव्यक्तसंघाटभेदेन द्विविधः । अनीश्वरो व्यक्ताव्यक्तसंघाटभेदेन द्विविध इति । अत्र चशब्द: समुच्चयार्थो द्रष्टव्यः । ईश्वरो द्विविधः । अनीश्चरो द्विविधः । प्रथम ईश्वरेण व्यक्ताव्यक्तसंघाटकेन वा सारक्षोऽनीशार्थः । द्वितीयोऽनीश्चरेण व्यक्ताव्यक्तसंधाटकेन वा संरक्ष्योऽनीशार्थ इति अथवा व्यक्तेनाव्यक्तेन चेश्वरेण सारक्ष्यं प्रथम ईश्वरानीशार्थो द्विविधः । तथा व्यक्तेनाव्यक्तेन चानीश्वरेण सारक्ष्य, द्वितीयोऽनीश्वरोऽ नीशार्थो द्विविध इति । तथा संघाटकेन च सारक्ष्यं पृथग्भूतोऽयं दोषोऽनीशार्थो द्रष्टव्यः सर्वत्र विरोधदर्शनादिति । अथवा निसृष्टो मुक्तो न निसृष्टो ऽनिसृष्टो निवारितः स च द्विविधः ईश्वरोऽनीश्वरएच । ईश्वरेण निसृष्टोऽनीश्वरेणऽनिसृष्ट: ईश्वरश्चतुर्भेदोऽनीश्वर इति । प्रथमः ईश्वरः सारक्षो व्यक्तोऽव्यक्तः संघाटकः । तथानीश्वरो ऽपि सारक्षो व्यक्तोऽव्यक्तः संघाटक: । मन्त्रादियुक्तः सारक्षः बालो व्यक्तः द्वयोः स्वामित्व संघाटकः। एवमनीश्वरोऽपि द्रष्टव्यः इति । एतैरनिसृष्टं निषिद्धं दत्तं वा दानं यदि गृह्यते तदा निसष्टो नाम दोषो भवति विरोधदर्शनादिति ॥४४४।।
उत्पादनदोषान् प्रतिपादयन्नाह
प्रथम-ईश्वर दान देता है और व्यक्त, अव्यक्त या संघाटक उसका निषेध करते हैं। वह ईश्वर सारक्ष अनीशार्थ है । दूसरा-अनीश्वर अर्थात् अप्रधान दाता दान देता है और व्यक्त या संघाटक उसका निषेध करते हैं तो वह दान अनीश्वर सारक्ष अनीशार्थ है।
अथवा व्यक्त और अव्यक्त ईश्वर के द्वारा निषिद्ध प्रथम ईश्वर अनीशार्थ दो प्रकार का है । तथा व्यक्त और अव्यक्त अनीश्वर के द्वारा निषिद्ध दूसरा अनीश्वर अनीशार्थ दोष दो प्रकार का है।
तथा संघाटक के द्वारा निषिद्ध अनीशार्थ एक पृथक् दोष है ऐसा जानना, क्योंकि सर्वत्र विरोध देखा जाता है।
अथवा निसृष्ट-मुक्त अर्थात् जो त्याग किया गया है वह निसृष्ट है, जो निसृष्ट नहीं है वह अनिसृष्ट-निवारित किया गया है। यह भी ईश्वर और अनीश्वर के भेद से दो प्रकार का है। ईश्वर के द्वारा निसृष्ट, अनिसृष्ट तथा अनीश्वर के द्वारा निसृष्ट, अनिसृष्ट ऐसे चार भेद हो जाते हैं।
प्रथम ईश्वर इन सारक्ष, व्यक्त, अव्यक्त और संघाटक से चार प्रकार का है। तथा अनीश्वर भी सारक्ष, व्यक्त, अव्यक्त और संघाटक से चार प्रकार का है। मंत्रादियुक्त स्वामी को सारक्ष कहते है, बालक-अज्ञानी स्वामी को अव्यक्त कहते हैं, प्रक्षापूर्वकारी-बुद्धिमान स्वामी व्यक्त है और अव्यक्त रूप पुरुष संघाटक है। ऐसे ही अनीश्वर में भी समझना चाहिए।
___ इनके द्वारा अनिसृष्ट निषिद्ध दान यदि साधु लेते हैं तो उन्हें निसृष्ट दोष होता है, क्योंकि विरोध देखा जाता है ।
अब उत्पादन दोषों को कहते हैं
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