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________________ पंचाचाराधिकारः] [३२७ लेखनं जीवप्रमादमंतरेण दुष्प्रतिलेखसंयमः। उपेक्षोपेक्षणं-उपकरणादिकं व्यवस्थाप्य पुन: कालान्तरेणाप्यदर्शनं जीवसम्मुर्छनादिकं दृष्ट्वा उपेक्षणं तस्या उपेक्षायाः संयमनं दिन प्रति निरीक्षणमुपेक्षासंयमः । अवहट्ट -अपहरणमपनयनं 'पंचेन्द्रियद्वीन्द्रियादीनामपनयनमुपकरणेभ्योऽन्यत्र संक्षेपणमुपवर्तनं तस्य संयम (मः) निराकरणं उदरकृम्यादिकस्य वा निराकरणमपहरणं संयमः । एवं चतुर्विधः संयमः । तथा मनसः संयमनं वचनस्य संयमनं कायस्य संयमनं मनोवचनकायसंयमस्त्रिप्रकारः। एवं पूर्वान् दशभेदानिमांश्च सप्तभेदान गृहीत्वा, सप्तदशप्रकारः संयम: प्राणसंयमः । अस्य रक्षणेन यथोक्तमाचरितं भवति ॥४१॥ तथेन्द्रियसंयम प्रतिपादयन्नाह पंचरसपंचवण्णा दो गंधे अट्ट फास सत्त सरा। मणसा चोद्दसजीवा इन्दियपाणा य संजमो णेप्रो॥४१॥ पंच रसास्तिक्तकषायाम्लकटुकमधुरा रसनेन्द्रियविषयाः । पंचवर्णाः कृष्णनीलरक्तपीतशुक्लाश्चा उनमें संमछेन आदि जीवों को देखकर उपेक्षा कर देना यह सब उपेक्षा नाम का असंयम है। किन्तु इस उपेक्षा का संयम करके प्रतिदिन उन वस्तुओं का निरीक्षण करना, पिच्छिका से उनका परिमार्जन करना उपेक्षा सयम है। अपहरण करना अथोत उपकरणों से द्वीन्द्रिय,पंचेन्द्रिय आदि जीवों को दूर करना, उन्हें निकालकर अन्यत्र क्षेपण करना अर्थात् उनकी रक्षा का ध्यान नहीं रखकर, उन्हें कहीं भी डाल देना यह अपहरण नाम का असंयम है। किन्तु ऐसा न करके उन्हें सुरक्षित स्थान पर डालना यह संयम है । अथवा उदर के कृमि आदि का निराकरण करना अपहरण संयम है । इस तरह यह चार प्रकार का संयम हो जाता है । तथा-मन को संयमित करना, वचन को संयमित करना और काय को संयमित करना यह तीन प्रकार का संयम है। ___ इस तरह पूर्व के दश भेदों को और इन सात भेदों को मिलाने से सत्रह प्रकार का र प्राण संयम हो जाता है। इनके रक्षण से आगमोक्त आचरण होता है। भावार्थ-अप्रतिलेख संयम, दुष्प्रतिलेख संयम, उपेक्षा संयम, अपहरण संयम, मन:संयम, वचन संयम और काय संयम ये सात संयम हैं। अब इन्द्रिय संयम का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं गाथार्थ-पांच रस, पाँच वर्ण, दो गन्ध, आठ स्पर्श, सात स्वर, और मन का विषय तथा चौदह जीव समास ये इन्द्रिय संयम और प्राण संयम हैं, ऐसा जानना चाहिए॥४१८।। प्राचारवृत्ति-तिक्त, कषाय, अम्ल, कटुक और मधुर ये पाँच रस हैं, चूंकि ये रसना इन्द्रिय के विषय हैं। कृष्ण, नील, रक्त, पीत और शक्ल ये पाँच वर्ण हैं ये चक्ष इन्द्रिय के विषय हैं। सुगन्ध और दुर्गन्ध ये दो गन्ध हैं ये घ्राणेन्द्रिय के विषय हैं। स्निग्ध, रूक्ष, कर्कश, मृदु, शीत, १ क एकेन्द्रिय । २ क द 'गंधा *निम्नलिखित चार गाथाएँ फलटन से प्रकाशित संस्करण में अधिक हैं णिय व मरतु व जीवो अयवाचारस्स णिन्छिदा हिंसा । पयवस्स पत्थि बंधो हिंसामित्तेण समिबस्स । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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